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عَنْ الْبَرَاءَ رضي الله عنه:

عَنِ النَّبِيِّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أَنَّهُ كَانَ فِي سَفَرٍ فَصَلَّى الْعِشَاءَ الْآخِرَةَ فَقَرَأَ فِي إِحْدَى الرَّكْعَتَيْنِ بِـ التِّينِ وَالزَّيْتُونِ. وَفِي لَفْظٍ: فَمَا سَمِعْتُ أَحَدًا أَحْسَنَ صَوْتًا أَوْ قِرَاءَةً مِنْهُ.
[صحيح] - [متفق عليه] - [صحيح البخاري: 7546]
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बरा बिन आज़िब- रज़ियल्लाहु अन्हुमा- कहते हैंः नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- एक सफर में थे। इशा की नमाज़ पढ़ी, तो एक रकअत में सूरा वत्-तीनि वज़्-ज़ैतून की तिलावत की। मैंने आपसे उत्तम आवाज़ अथवा उत्तम क़िराअत किसी की नहीं सुनी।
[सह़ीह़] - [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।]

व्याख्या

नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने इशा की नमाज़ की पहली रकात में सूरा 'वत्-तीन वज़़्-ज़ैतून' पढ़ी; क्योंकि आप सफ़र में थे और सफ़र की परेशानी एवं तकान ज़्यादा लंबी क़िरात की अनुमति नहीं देती। लेकिन सफ़र में होने के बावजूद नमाज़ के अंदर अच्छी आवाज़ में क़ुरआन पढ़ने से नहीं रुके, जो कुरान सुनते समय, विनीत होने का कारण बनता है और जिस कारण दिल के न भटकने की कैफ़ियत पैदा होती है।

हदीस का संदेश

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