عن أبي هريرة رضي الله عنه مرفوعًا: «اتقوا اللَّعَّانَيْن» قالوا: وما اللَّعَّانَانِ يا رسول الله؟ قال: «الذي يَتَخَلَّى في طريق الناس، أو في ظِلِّهم».
[صحيح] - [رواه مسلم]
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अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अनहु) कहते हैं कि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया: दो लानत के कामों से बचो। लोगों ने कहा: ऐ अल्लाह के रसूल! ये दो लानत के काम क्या हैं? आपने फ़रमाया: जो लोगों के रास्ते या उनके साये में पाखाना करे।
सह़ीह़ - इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

दो ऐसे कार्यों से बचो जो लोगों की लानत का कारण हुआ करते हैं और उनके करने वाले को सामान्यतया बुरा कहा जाता है तथा उसपर लानत की जाती है। चूँकि यह दोनों कार्य लानत का सबब हैं, इसलिए लानत की निसबत उनकी ओर ही कर दी गई है। यह दोनों कार्य हैं, लोगों के रास्ते अथवा साये में पेशाब-पाखाना करना। यह हदीस अल्लाह तआला के इस कथन की तरह है : "और उन्हें बुरा न कहो, जिन (मूर्तियों) को वे अल्लाह के सिवा पुकारते हैं। अन्यथा, वे लोग अज्ञानता के कारण अति करके अल्लाह को बुरा कहेंगे।" [सूरा अल-अनआम, आयत संख्या : 108} यानी तुम्हारा उनके देवी-देवताओं को बुरा कहना इस बात का कारण बनेगा कि वे अल्लाह को बुरा कहेंगे। इसी तरह एक अन्य हदीस में है कि अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने इस बात से मना किया है कि आदमी अपने माता-पिता को गाली दे। यह सुन सहाबा ने कहा कि क्या कोई व्यक्ति अपने माता-पिता को गाली दे सकता है? आपने उत्तर दिया : "हाँ, दे सकता है। इसकी सुरत यह है कि वह किसी के पिता को गाली दे और वह उसके प्रतिउत्तर में उसके पिता को गाली दे। इसी तरह वह किसी की माता को गाली दे और वह उसके प्रतिउत्तर में उसकी माता को गाली दे।" इस तरह चूँकि वही अपने माता-पिता को गाली दिलाने का कारण बना, इसलिए देखा जाए, तो उसी ने अपने माता-पिता को गाली दी। आपके शब्द : "जो लोगों के रास्ते अथवा उनकी छावँ की जगहों में पाखाना करे" का अर्थ है, ऐसे स्थानों में पाखाना अथवा पेशाब करे, जहाँ से लोगों का आना-जाना होता हो। यह काम हराम है, इसमें कोई संदेह नहीं है। चाहे ऐसा यात्रा की अवस्था में किया जाए या ठहराव की अवस्था में। कारण यह है कि इससे लोगों को कष्ट होता है। जबकि उच्च एवं अल्लाह ने कहा है : "और जो दुःख देते हैं ईमान वालों तथा ईमान वालियों को, बिना किसी दोष के, जो उन्होंने किया हो, तो उन्होंने लाद लिया आरोप तथा खुले पाप को।" हाँ, यदि रास्ता वीरान पड़ा हो और उससे किसी का आना-जाना न होता हो, तो उसमें पेशाब-पाखाना करने में कोई हर्ज नहीं है। क्योंकि इस अवस्था में वह कारण ही न रहा, जिसकी वजह से मना किया गया है। साये में पखाना करने की मनाही से मुराद ऐसे साए में पेशाब-पाखाना करना है, जहाँ लोगों का उठना-बैठना होता हो। जहाँ तक ऐसे स्थान में स्थित छाया की बात है, जहाँ लोगों का उठना-बेठना न होता हो, तो उसमें पेशाब-पाखाना करने में कोई हर्ज नहीं है। क्योंकि यहाँ भी वह कारण न रहा, जिसकी वजह से मना किया गया है। साथ ही एक हदीस में भी आया है कि अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- खजूर के एक झुंड के नीचे शौच के लिए बैठ गए, जहाँ साया था।

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