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عن ابن عمر رضي الله عنهما مرفوعاً: «على المرء المسلم السمع والطاعة فيما أحب وكَرِهَ، إلا أن يُؤمر بمعصية، فإذا أُمِرَ بمعصية فلا سمع ولا طاعة».
[صحيح] - [متفق عليه]
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इब्ने उमर -अल्लाह उनसे प्रसन्न हो- से मरफ़ूअन वर्णित है : "एक मुस्लिम व्यक्ति पर ज़रूरी है कि वह सुने और आज्ञा का पानल करे। चाहे उसे पसंद हो या नापसंद। यह और बात है कि उसे किसी गुनाह का आदेश दिया जाए। यदि उसे किसी गुनाह का आदेश दिया जाता है, तो सुनना और आज्ञा का पालन करना ज़रूरी नहीं है।"
[सह़ीह़] - [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।]

व्याख्या

इस हदीस में बताया गया है कि शासक के आदेशों का पालन करना अनिवार्य है, चाहे उसका आदेश हमें पसंद हो या नापसंद। हाँ, यदि किसी गुनाह का आदेश दिया जाए, तो बात अलग है। क्योंकि गुनाह के काम में उसके आदेश का अनुपालन नहीं किया जाएगा।

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