عن عائشة رضي الله عنها قالت: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم : "لا يَحِلّ دمُ امرئ مسلم، يشهد أن لا إله إلا الله، وأن محمدًا رسول الله، إلا بإحدى ثلاث: رجل زَنَى بَعْدَ إِحْصَان، فإنه يُرْجَم، ورجل خرج مُحاربًا لله ورسوله، فإنه يُقَتُل، أو يُصلَّبُ، أو يُنفى من الأرض، أو يَقتلَ نفسًا، فيُقتلُ بها".
[صحيح] - [رواه أبو داود والنسائي]
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आइशा -रज़ियल्लाहु अन्हा- से रिवायत है, वह कहती हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया : “कोई मुसलमान, जो इस बात की गवाही देता हो कि अल्लाह के सिवा कोई सच्चा माबूद (उपास्य) नहीं और मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- अल्लाह के रसूल हैं, उसका ख़ून केवल उसी समय हलाल होगा जब वह इन तीन लोगों में से कोई एक हो : ऐसा व्यक्ति जो विवाह के पश्चात व्यभिचार करे, तो उसे संगसार किया जाएगा; ऐसा व्यक्ति जो अल्लाह तथा उसके रसूल से लड़ने के लिए निकले (अर्थात लोगों को रास्तों पर लूटे) तो उसे कत्ल किया जाएग अथवा सूली पर चढ़ाया जाएगा या फिर तड़ीपार (मुल्क बदर) कर दिया जाएगा और ऐसा व्यक्ति जो किसी को कत्ल कर दे, तो उसे भी कत्ल किया जाएगा।”
[सह़ीह़] - [इसे नसाई ने रिवायत किया है। - इसे अबू दाऊद ने रिवायत किया है।]
यह हदीस इस बात का प्रमाण है कि ऐसे मुसलमानों का रक्तपात हराम है, जो गवाही देते हों कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं है और मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- अल्लाह के रसूल हैं, तथा उन्होंने कोई ऐसा काम भी न किया हो, जो इन दो गवाहियों के विरुद्ध हो और इन्सान को इस्लाम के दायरे से निकाल बाहर करता हो। इसका कारण यह है कि विधि-निर्माता पाक एवं महान अल्लाह का एक लक्ष्य जान की सुरक्षा तथा उसे शांति प्रदान करना भी है। उसने अपनी शरीयत में उसकी सुरक्षा का पूरा प्रबंध भी किया है। उसने अल्लाह का साझी बनाने के बाद सबसे बड़ा गुनाह किसी ऐसे व्यक्ति के क़त्ल को ही क़रार दिया है, जिसे क़त्ल करना उसने हराम घोषित कर रखा है। यहाँ उसने ऐसे मुसलमान के क़त्ल को हराम क़रार दिया है, जो अल्लाह के सत्य पूज्य होने और मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के रसूल होने की गवाही देता हो, जब तक वह निम्नांकित तीन कामों में से किसी एक काम में संलिप्त न हो जाए : पहला : वह इसके बाद भी व्यभिचार में संलिप्त हो जाए कि अल्लाह ने उसे शादीशुदा बनाया और मान्य निकाह के द्वारा उसकी शर्मगाह की सुरक्षा का प्रबंध किया। दूसरा : वह किसी निर्दोष मुसलमान का नाहक़ क़त्ल कर दे। इस प्रकार के व्यक्ति के बारे में न्याय एवं समानता की बात यह है कि उसके साथ भी वही किया जाए, जो उसने दूसरे के साथ किया है, ताकि सत्य का बोलबाला रहे और अत्याचारियों को अत्याचार से रोका जा सके। तीसरा : ऐसा व्यक्ति जो मुसलमानों के विरुद्ध अल्लाह और उसके रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से युद्ध के लिए खड़ा हो जाए तथा लोगों का रास्ता रोक कर लूट-पाट करे, भयभीत करे और फ़साद मचाए। ऐसे व्यक्ति को क़त्ल किया जाएगा, सूली दी जाएगी या फिर ताड़ीपार कर दिया जाएगा, ताकि लोग उसकी बुराई एवं अत्याचार से सुरक्षित रह सकें। इन तीन लोगों को क़त्ल किया जाएगा कि इनके क़त्ल ही में धर्म, जान एवं मान-सम्मान की सुरक्षा निहित है।