عن أبي سعيد الخدري رضي الله عنه قلنا يا رسولَ الله، هل نرى ربَّنا يوم القيامة؟ قال: «هل تُضَارُّون في رؤية الشمس والقمر إذا كانت صَحْوًا؟»، قلنا: لا، قال: «فإنكم لا تُضَارُّون في رؤية ربِّكم يومئذ، إلا كما تُضَارُّون في رؤيتهما» ثم قال: «ينادي منادٍ: ليذهب كلُّ قوم إلى ما كانوا يعبدون، فيذهب أصحابُ الصليب مع صليبهم، وأصحابُ الأوثان مع أوثانهم، وأصحابُ كلِّ آلهةٍ مع آلهتهم، حتى يبقى من كان يعبد اللهَ، مِن بَرٍّ أو فاجر، وغُبَّرات من أهل الكتاب، ثم يؤتى بجهنم تعرضُ كأنها سَرابٌ، فيقال لليهود: ما كنتم تعبدون؟ قالوا: كنا نعبد عُزَير ابنَ الله، فيقال: كذبتم، لم يكن لله صاحبة ولا ولد، فما تريدون؟ قالوا: نريد أن تسقيَنا، فيقال: اشربوا، فيتساقطون في جهنم، ثم يقال للنصارى: ما كنتم تعبدون؟ فيقولون: كنا نعبد المسيحَ ابن الله، فيقال: كذبتم، لم يكن لله صاحبة، ولا ولد، فما تريدون؟ فيقولون: نريد أن تسقيَنا، فيقال: اشربوا فيتساقطون في جهنم، حتى يبقى من كان يعبد الله من بَرٍّ أو فاجر، فيقال لهم: ما يحبسكم وقد ذهب الناس؟ فيقولون: فارقناهم، ونحن أحوجُ منا إليه اليوم، وإنَّا سمعنا مناديًا ينادي: ليَلْحقْ كلُّ قوم بما كانوا يعبدون، وإنما ننتظر ربَّنا، قال: فيأتيهم الجَبَّار في صورة غير صورتِه التي رأوه فيها أولَ مرة، فيقول: أنا ربُّكم، فيقولون: أنت ربُّنا، فلا يُكَلِّمُه إلا الأنبياء، فيقول: هل بينكم وبينه آيةٌ تعرفونه؟ فيقولون: الساق، فيَكشِفُ عن ساقه، فيسجد له كلُّ مؤمن، ويبقى من كان يسجد لله رِياءً وسُمْعَة، فيذهب كيما يسجد، فيعود ظهرُه طَبَقًا واحدًا، ثم يؤتى بالجسر فيُجْعَل بين ظَهْرَي جهنم»، قلنا: يا رسول الله، وما الجسر؟ قال: «مَدْحَضةٌ مَزَلَّةٌ، عليه خطاطيفُ وكَلاليبُ، وحَسَكَةٌ مُفَلْطَحَةٌ لها شوكةٌ عُقَيْفاء تكون بنَجْد، يقال لها: السَّعْدان، المؤمن عليها كالطَّرْف وكالبَرْق وكالرِّيح، وكأَجاويد الخيل والرِّكاب، فناجٍ مُسَلَّمٌ، وناجٍ مَخْدوشٌ، ومَكْدُوسٌ في نار جهنم، حتى يمرَّ آخرُهم يسحب سحبًا، فما أنتم بأشد لي مُناشدةً في الحق قد تبيَّن لكم من المؤمن يومئذ للجَبَّار، وإذا رأَوْا أنهم قد نَجَوْا، في إخوانهم، يقولون: ربنا إخواننا، كانوا يصلون معنا، ويصومون معنا، ويعملون معنا، فيقول الله تعالى : اذهبوا، فمن وجدتُم في قلبه مِثْقالُ دِينار من إيمان فأخرجوه، ويُحَرِّمُ اللهُ صُوَرَهم على النار، فيأتونهم وبعضُهم قد غاب في النار إلى قدمِه، وإلى أنصاف ساقَيْه، فيُخْرِجون مَن عَرَفوا، ثم يعودون، فيقول: اذهبوا فمَن وجدتُم في قلبه مِثْقال نصف دينار فأخرجوه، فيُخْرِجون مَن عَرَفوا، ثم يعودون، فيقول: اذهبوا فمن وجدتم في قلبه مِثْقال ذرة من إيمان فأخرجوه، فيُخْرِجون مَن عَرَفوا» قال أبو سعيد: فإنْ لم تُصَدِّقوني فاقرءوا: {إنَّ اللهَ لا يَظْلِمُ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ وإنْ تَكُ حَسَنَةً يُضَاعِفْهَا} «فيشفعُ النبيُّون والملائكة والمؤمنون، فيقول الجَبَّار: بَقِيَتْ شفاعتي، فيَقْبِض قَبْضَةً من النار، فيُخْرِجُ أقوامًا قدِ امْتَحَشُوا، فيُلْقَوْن في نهرٍ بأفواه الجنة، يقال له: ماء الحياة، فيَنْبُتون في حافَّتَيْه كما تَنْبُتُ الحِبَّة في حَمِيل السَّيْل، قد رأيتُموها إلى جانب الصَّخْرة، وإلى جانب الشجرة، فما كان إلى الشمس منها كان أخضر، وما كان منها إلى الظِّلِّ كان أبيض، فيخرجون كأنَّهم اللؤلؤ، فيُجعل في رقابهم الخَوَاتيم، فيَدخلون الجنة، فيقول أهل الجنة: هؤلاء عُتَقاءُ الرحمن، أدخلهم الجنةَ بغير عَمَلٍ عملوه، ولا خيرٍ قَدَّموه، فيقال لهم: لكم ما رأيتم ومثلُه معه».
[صحيح] - [متفق عليه]
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अबू सईद खुदरी (रज़ियल्लाहु अन्हु) से रिवायत है, वह कहते हैं कि हमने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! क्या हम क़यामत के दिन अपने रब को देख सकेंगे? आपने कहा : “जब आसमान साफ हो तो क्या सूरज और चाँद को देखने में तुम्हें कोई कठिनाई होती है?” हमने कहा : नहीं। आपने फ़रमाया : “उस दिन तुम्हें अपने रब को देखने में इससे अधिक कठिनाई नहीं होगी।” फिर फ़रमाया : “आवाज़ देने वाला आवाज़ देगा : जो गिरोह (दुनिया में) जिसकी इबादत करता था, वह उसी के साथ जाए। अतः, सलीब वाले अपनी सलीब के साथ, बुत परस्त अपने बुतों के साथ और (झूठे) माबूदों वाले अपने माबूदों के साथ हो जाएँगे और केवल वही लोग शेष रह जाएँगे, जो अल्लाह की इबादत करते थे, चाहे वे नेक हों या गुनहगार। इसी तरह कुछ बचेखुचे किताब वाले भी शेष रह जाएँगे। फिर जहन्नम को इस हाल में लाया जाएगा जैसे कि वह सराब हो और यहूदियों से कहा जाएगा : तुम किसकी इबादत करते थे? वे कहेंगे : हम अल्लाह के बेटे उज़ैर की पूजा करते थे। उनसे कहा जाएगा : तुम झूठ बोलते हो। अल्लाह की न तो पत्नी है और न पुत्र। अच्छा यह बताओ कि तुम चाहते क्या हो? वे कहेंगे : हम चाहते हैं कि तू हमें पानी पिलाए। कहा जाएगा : पी लो। चुनांचे, जब वे पानी पीने के लिए बढ़ेंगे, तो जहन्नम में गिर पड़ेंगे। फिर ईसाइयों से कहा जाएगा : तुम किसकी इबादत किया करते थे? उत्तर देंगे : हम अल्लाह के बेटे मसीह की इबादत करते थे। कहा जाएगा : तुम झूठ बोलते हो। अल्लाह की न पत्नी है और न बेटा। अच्छा, अब तुम क्या चाहते हो? उत्तर देंगे : हम चाहते हैं कि तू हमें पानी पिला दे। उनसे कहा जाएगा : ठीक है, पी लो। लेकिन जब पानी पीने के लिए बढ़ेंगे, तो जहन्नम में गिर पड़ेंगे। यहाँ तक कि केवल अल्लाह की इबादत करने वाले नेक और गुनहगार लोग बाक़ी रह जाएँगे। अतः, उनसे कहा जाएगा : तुम यहाँ क्यों रुके हुए हो, जबकि सब लोग जा चुके हैं? वे कहेंगे : हम उनसे उस समय अलग हो गए थे, जब हमें उनकी आज से कहीं अधिक ज़रूरत थी। हमने एक एलान करने वाले को यह एलान करते सुना कि जो गिरोह (दुनिया में) जिसकी इबादत करता था, वह उसके साथ चला जाए और इस समय हम अपने रब की प्रतीक्षा में हैं। आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया : तब सर्वशक्तिमान अल्लाह उनके सामने उससे भिन्न रूप में आएगा, जिस रूप में पहली बार उन लोगों ने उसे देखा था। अल्लाह कहेगा : मैं तुम्हारा रब हूँ। वे भी कहेंगे : अवश्य ही तू हमारा रब है। उस समय उससे केवल नबीगण ही बात करेंगे। अल्लाह कहेगा : क्या तुम्हारे और उसके बीच कोई निशानी है, जिसके माध्यम से तुम उसे पहचान सको? वे कहेंगे : हाँ! पिंडली। तब वह अपनी पिंडली खोलेगा, चुनांचे सारे मोमिन सजदे में गिर जाएँगे और केवल वही लोग शेष रह जाएँगे, जो (दुनिया में) दिखावे तथा शोहरत के सजदा करते थे। वे भी अन्य लोगों की तरह सजदा करने जाएँगे, लेकिन उनकी पीठ एक ही हड्डी की तरह बन जाएगी। फिर पुलसिरात को लाया जाएगा और जहन्नम के ऊपर रखा जाएगा।” हमने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! यह पुलसिरात क्या है? आपने कहा : “फिसलने और गिरने लायक़ एक पुल, जिसमें अंकुश और बड़े-बड़े और मुड़े हुए काँटे लगे होंगे, जो नज्द की सादान झाड़ी के काँटों की तरह होंगे। मोमिन उसपर से पलक झपकने की तरह, बिजली की रफ़तार से, हवा की चाल से, उम्दा घोड़े की रफ़तार से और ऊँट की रफ़तार से गुज़र जाएँगे। चुनांचे, कोई सुरक्षित गुज़र जाएगा, कोई खरोंच के साथ पार हो जागा और कोई जहन्नम में जा गिरेगा। यहाँ तक कि अंतिम व्यक्ति घिसटते हुए पार होगा। तुम लोग आज किसी हक़ के लिए जिस तरह मुझसे मुतालबा करते हो, उस दिन ईमान वाले सर्वशक्तिमान अल्लाह से उससे भी अधिक ज़ोर-शोर से मुतालबा करेंगे। फिर जब देखेंगे कि उनको मुक्ति मिल गई है, तो अपने भाइयों के बारे में कहेंगे : ऐ हमारे रब! हमारे भाइयों को मुक्ति प्रदान कीजिए, जो हमारे साथ नमाज़ पढ़ते थे, हमारे साथ रोज़ा रखते थे और हमारे साथ काम करते थे। उच्च एवं महान अल्लाह कहेगा : जाओ और जिसके दिल में राई के दाने के बराबर भी ईमान पाओ, उसे निकाल लाओ। अल्लाह उनके चेहरों को जहन्नम की आग पर हराम कर देगा। वे उनके पास आएँगे, तो कोई अपने क़दमों तक आग में फँसा होगा और कोई आधी पिंडली तक। जिन्हें वे पहचान पाएँगे, उन्हें निकाल लेंगे। फिर लौटकर जाएँगे, तो अल्लाह कहेगा : फिर जाओ और जिसके दिल में राई के दाने के समान भी ईमान पाओ, उसे निकाल लो। वे जाएँगे और जिन्हें पहाचन सकेंगे, उन्हें निकाल लाएँगे।” अबू सईद ख़ुदरी (रज़ियल्लाहु अन्हु) कहते हैं : यदि तुम्हें मेरी बात सच्ची न लगे, तो यह आयत पढ़ो : {निस्संदेह अल्लाह तनिक भी किसी पर अत्याचार नहीं करता तथा यदि कोई नेकी होती है, तो उसे अल्लाह बढ़ाता है।} फिर नबी, फरिश्ते और मोमिन सिफ़ारिश करेंगे तथा सर्वशक्तिमान अल्लाह कहेगा : अब मेरी सिफ़ारिश शेष रह गई है। चुनांचे जहन्नम से एक मुट्ठी उठाएगा और ऐसे लोगों को निकालेगा, जो जल चुके होंगे। फिर उन्हें जन्नत के सामने वाली नहर में डाला जाएगा, जिसे आब-ए-हयात कहा जाता है। वे उसके दोनों किनारों पर इस प्रकार उग उठेंगे, जैसे सैलाब के झाग में पौधे उग आते हैं। तुमने किसी चट्टान के किनारे और पेड़ के किनारे पौधों को उगते देखा होगा। उनका जो भाग सूर्य की ओर होता है, वह हरा होता है और जो साए की ओर होता है, वह सफ़ेद होता है। चुनांचे वे ऐसे निकलेंगे, जैसे मोती हों। फिर उनकी गरदनों पर मुहरें लगा दी जाएँगी और वे जन्नत में प्रवेश करेंगे। उन्हें देख जन्नत वाले कहेंग : ये दयावान अल्लाह के द्वारा मुक्त किए हुए लोग हैं। अल्लाह ने इन्हें इनके द्वारा किए गए किसी कार्य और इनके द्वारा आगे भेजी गई किसी भलाई के बिना ही जन्नत में दाख़िल किया है। उनसे कहा जाएगा : तुम्हारे लिए वह है, जो तुम देख रहे हो और उसके साथ उसके समान भी।"
[सह़ीह़] - [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।]
अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के कुछ साथियों ने आपसे पूछा कि क्या क़यामत के दिन हम अपने पालनहार को देख सकेंगे? तो आपने उनको उत्तर दिया कि हाँ, तुम क़यामत के दिन अपने पालनहार को उसी तरह देख सकोगे, जैसे दोपहर के समय सूरज को और चौदहवीं की रात में चाँद को देखते हो। न भीड़-भाड़ होगी, न टकराव। याद रहे कि यहाँ तशबीह स्पष्टता तथा संदेह, कठिनाई और टकराव न होने में दी गई है। यहाँ समानता एक देखने की दूसरे देखने से बताई गई है, एक देखी जाने वाली चीज़ की दूसरी देखी जाने वाली चीज़ से नहीं। ज्ञात हो कि यह देखना उस देखने से भिन्न है, जिसका सौभाग्य अल्लाह के वलियों को जन्नत में सम्मान के रूप में प्राप्त होगा। यह दरअसल इस बात का अंतर करने के लिए है कि किसने अल्लाह की इबादत की और किसने उसके अतिरिक्त किसी और की इबादत की। फिर अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने बताया कि क़यामत के दिन एक पुकारने वाला पुकारेगा कि जो अल्लाह के अतिरिक्त किसी और की इबादत करता था, वह उसके साथ हो जाए। एक अन्य सहीह रिवायत में है कि स्वयं पवित्र अल्लाह ही पुकारेगा। अतः जो लोग अल्लाह को छोड़ बुतों की पूजा करते थे उन्हें एकत्र किया जाएगा और जहन्नम की आग में डाल दिया जाएगा। अब केवल वही लोग बचेंगे जो अल्लाह की इबादत करते थे, चाहे आज्ञाकारी हों या अवज्ञाकारी। इसी तरह बचे-खुचे यहूदी एवं ईसाई भी रह जाएँगे। जबकि अधिकतर, बल्कि समूचे यहूदियों एवं ईसाइयों को उनके बुतों के साथ जहन्नम में डाल दिया जाएगा। फिर जहन्नम को लोगों के सामने लाया जाएगा, जो सराब (मरीचिका) की तरह दिखाई देगी। चुनांचे यहूदियों को लाया जाएगा और उनसे कहा जाएगा कि तुम किसकी इबादत करते थे? उत्तर देंगे कि हम अल्लाह के बेटे उज़ैर की इबादत करते थे। इसपर उनसे कहा जाएगा : तुम्हारी यह बात झूठी है कि उज़ैर अल्लाह के बेटे हैं। अल्लाह की न तो पत्नी है और न संतान। फिर उनसे कहा जाएगा कि तुम चाहते क्या हो? उत्तर देंगे कि हम पानी पीना चाहते हैं। उस दिन इतनी बेचैनियों एवं भयावह कठिनाइयों का सामना होगा कि उन्हें सबसे पहले पानी ही की तलब होगी। चूँकि जहन्नम को उनके सामने इस तरह लाया जाएगा कि वह पानी की तरह दिखाई पड़ेगी, इसलिए उनसे कहा जाएगा कि तुम जिसे पानी समझते हो उसके पास जाओ और पी लो। जाएँगे, तो उन्हें जहन्नम मिलेगी, जो इतनी तेज़ जल रही होगी और उससे इतनी भीषण लपटें उठ रही होंगी कि मानो उसका एक भाग दूसरे भाग को तोड़ रहा हो। यहूदियों के बाद इसी तरह की बात ईसाइयों से भी की जाएगी।यहाँ तक कि जब केवल एक अल्लाह की इबादत करने वाले, आज्ञाकारी हों कि अवज्ञारी, ही रह जाएँगे, तो उनसे कहा जाएगा कि जब सब लोग जा चुके हैं, तो तुम यहाँ क्यों खड़े हो? वे उत्तर देंगे : हम तो लोगों से दुनिया ही में अलग हो गए थे और आज उनसे अलग होने की ज़रूरत और अधिक है। उन लोगों ने अल्लाह की अवज्ञा और उसके आदेश की अवहेलना की, तो अल्लाह की प्रसन्नता की प्राप्ति के लिए उनसे घृणा करते हुए और अपने पालनहार के आज्ञापालन को प्राथमिकता देते हुए हमने उनसे दुश्मनी कर ली। इस समय हम अपने पालनहार की प्रतीक्षा में हैं, जिसकी हम दुनिया में इबादत किया करते थे। चुनांचे अल्लाह उनके सामने उससे भिन्न रूप से आएगा, जिस रूप में उन लोगों ने उसे पहली बार देखा था। यहाँ इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि उन लोगों ने अल्लाह को एक ऐसे रूप में देखा था, जिस रूप में वे उसे पहचानते थे। इस रूप की गलत-सलत व्याख्या करना उचित नहीं है। बल्कि उसकी कैफ़ियत बताए बिना, उसकी उपमा दिए बिना, उसके अर्थ के साथ छेड़-छाड़ किए बिना और प्रयुक्त शब्द को अर्थविहीन बनाए बिना उसपर ईमान रखना ज़रूरी है। जब अल्लाह सामने आएगा, तो उनसे कहेगा : मैं तुम्हारा पालनहार हूँ। इससे प्रसन्न होकर वे कहेंगे : सचमुच तुम हमारे पालनहार हो। उस समय पवित्र अल्लाह केवल नबियों से बात करेगा। उनसे कहेगा कि क्या तुम्हारे और उसके बीच कोई निशानी निर्धारित है, जिससे तुम उसे पहचान लो? वे उत्तर देंगे कि हाँ है, और वह निशानी पिंडली है। चुनांचे पवित्र अल्लाह अपनी पिंडली खोलेगा और इससे ईमान वाले उसे पहचान लेंगे तथा सजदे में गिर पड़ेंगे। लेकिन इसके विपरीत मुनाफ़िक़ लोग जो अल्लाह की इबादत दिखाने के लिए किया करते थे, सजदे से रोक दिए जाएँगे। उनकी पीठ को एक तख़्ते की भाँति बना दिया जाएगा तथा वे झुकने एवं अल्लाह की इबादत करने की क्षमता खो देंगे। उन्हें यह सज़ा इसलिए मिलेगी कि वे दुनिया में सच्चे मन से अल्लाह को सजदा नहीं करते थे। उनका सजदा सांसारिक उद्देश्यों से प्रेरित होता था। इस हदीस में अल्लाह की पिंडली होने का उल्लेख है। दरअसल यह तथा इस प्रकार की अन्य हदीसें अल्लाह तआला के इस फ़रमान की तफ़सीर हैं : "उस दिन पिंडली खोली जाएगी और उन्हें सजदा करने को कहा जाएगा, लेकिन वे सजदा नहीं कर सकेंगे।" ज्ञात हो कि यहाँ पिंडली का अर्थ कठिनाई एवं बेचैनी की भीषणता बताना उचित नहीं है। इसके साथ ही सुन्नत से भी पिंडली को साबित करना वाजिब है और आयत के बारे में यही कहना अधिक उत्तम और सही है कि इससे मुराद अल्लाह की पिंडली ही है। लेकिन हम उसकी न तो कैफ़ियत बयान करेंगे, न उपमा देंगे, न उसके अर्थ के साथ छेड़-छाड़ करेंगे और न प्रयुक्त शब्द को अर्थविहीन बनाएँगे। फिर पुल-सिरात को लाकर जहन्नम के बीचों-बीच रख दिया जाएगा। इसमें इतनी फिसलन होगी कि क़दम स्थिर नहीं रह सकेंगे। इस पुल पर अंकुश लगे होंगे, ताकि जिसे मन हो, उचक लिया जा सके। इसमें मोटे-मोटे और बड़े-बड़े काँटे भी होंगे। इस पुल से लोग अपने ईमान एवं कर्म के अनुसार गुज़रेंगे। जिसका ईमान संपूर्ण एवं कर्म सत्य तथा निष्ठा से परिपूर्ण होगा, वह जहन्नम के ऊपर से पलक झपकते गुज़र जाएगा। जबकि जिसका ईमान एवं कर्म इससे निम्न स्तर का होगा, वह अपने ईमान एवं कर्म के अनुसार गुज़रेगा, जिसका वर्णन हदीस में मौजूद है। हदीस में उसका उदाहरण बिजली तथा वायु आदि से दिया गया है। दरसअल पुल-सिरात पर गुज़रने वाले लोग चार प्रकार के होंगे : पहला : ऐसे लोग जिन्हें किसी प्रकार का कष्ट नहीं होगा। इस प्रकार के लोग भी उसपर तेज़ी से गुज़रने के मामले में अलग-अलग श्रेणियों में विभक्त होंगे, जिसका उल्लेख हदीस में है। दूसरा : ऐसे लोग जो खरोंच तथा हल्के ज़ख़्म के साथ उसे पार करने में सफल हो जाएँगे। यानी उन्हें जहन्नम की लपट की तपिश सहनी होगी या सिरात पर लगे अंकुशों के ज़ख़्म सहने पड़ेंगे। तीसरा : ऐसे लोग जिन्हें ताक़त से जहन्नम में फेंक दिया जाएगा। चौथा : ऐसे लोग जो सिरात से घिसटकर पार होंगे और उनके कर्म इतने दुर्बल होंगे कि उन्हें उठाने में असमर्थ होंगे। फिर अल्लाह के रसूल -सल्ल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया : "तुम लोग आज किसी हक़ का जिस तरह मुझसे मुतालबा करते हो, उस दिन ईमान वाले सर्वशक्तिमान अल्लाह से उससे भी अधिक ज़ोर-शोर से मुतालबा करेंगे।" यह दरअसल अल्लाह की असीम कृपा एवं अशेष दया का एक नमूना है कि वह अपने मोमिन बंदों को अपने उन भाइयों की क्षमा लिए सिफ़ारिश करने का अवसर देगा, जो अपने उन अपराधों के कारण जहन्नम में डाल दिए गए, जिनके द्वारा वे अपने पालनहार से टकराने का प्रयास करते थे। अल्लाह की कृपा देखिए कि इसके बावजूद वह जहन्नम की यातना तथा सिरात की भयावहता से मुक्ति प्राप्त करने वाले ईमान वालों के दिलों में यह बात डाल देगा कि वे उनकी क्षमा का मुतालबा करें और उनकी सिफ़ारिश करें। फिर, उन्हें इसकी अनुमति भी देगा। यह पवित्र एवं उच्च अल्लाह की कृपा एवं करुणा के अतिरिक्त कुछ और नहीं है। "वे कहेंगे : ऐ हमारे रब! हमारे भाइयों को मुक्ति प्रदान कीजिए, जो हमारे साथ नमाज़ पढ़ते थे, हमारे साथ रोज़ा रखते थे और हमारे साथ काम करते थे।" इसका विपरीत अर्थ यह हुआ कि जो लोग मुसलमानों के साथ नमाज़ नहीं पढ़ते और उनके साथ रोज़ा नहीं रखते, वे उनकी सिफ़ारिश नहीं करेंगे और अपने पालनहार से उनकी क्षमा का मुतालबा भी नहीं करेंगे। इससे प्रमाणित होता है कि यहाँ जिन लोगों की क्षमा मोमिनों द्वारा पाक प्रभु से माँगी जा रही है, वे मोमिन एवं एकेश्वरवादी थे, क्योंकि वे कह रहे हैं : "हमारे भाइयों को मुक्ति प्रदान कीजिए, जो हमारे साथ नमाज़ पढ़ते थे, हमारे साथ रोज़ा रखते थे।" लेकिन वे कुछ गुनाहों में संलिप्त हो गए थे, जिनके कारण उन्हें जहन्नम जाना पड़ा था। इससे इस उम्मत के दो पथभ्रष्ट संप्रदायों -खवारज एवं मुतज़िला का खंडन होता है, जो कहते हैं कि जो व्यक्ति जहन्नम में प्रवेश कर गया, वह उससे निकल नहीं सकेगा और कबीरा गुनाह करने वाला व्यक्ति जहन्नम में रहेगा। चुनांचे उनसे अल्लाह कहेगा : जाओ और जिसके दिल में दीनार के बराबर भी ईमान हो, उसे जहन्नम से निकाल लाओ। अल्लाह आग को इस बात की अनुमति नहीं देगा कि उनके चेहरों को खा सके। ये लोग उनके पास जाएँगे, तो देखेंगे कि किसी के क़दमों तक आग है और किसी की आधी पिंडली तक आग है। वे जिनको पहचान सकेंगे, उन्हें निकाल लेंगे। जब लौटकर जाएँगे, तो अल्लाह उनसे कहेगा : जाओ और जिसके दिल में आधे दीनार के बराबर भी ईमान हो, उसे भी निकाल लाओ। वे जाएँगे और जिसे पहचान सकेंगे, उसे निकाल लाएँगे। जब अल्लाह के पास पहुँचेगे, तो अल्लाह कहेगा : जाओ और जिसके दिल में कण भर भी ईमान हो, उसे भी निकाल लाओ। वे जाएँगे और जिसे पहचान सकेंगे, उसे निकाल लेंगे। इतनी हदीस सुनाने के बाद अबू सईद ख़ुदरी -रज़ियल्लाहु अनहु- ने कहा : यदि तुम्हें मेरी बात सच्ची न लग रही हो, तो यह आयत पढ़ लो : "अल्लाह कण भर भी किसी पर अत्याचार नहीं करता, यदि कुछ भलाई (किसी ने) की हो, तो (अल्लाह) उसे अधिक कर देता है।" अबू सईद ख़ुदरी -रज़ियल्लाहु अनहु- ने इस आयत को प्रमाण के तौर पर इस रूप में प्रस्तुत किया है कि बंदे के दिल में यदि कण भर भी ईमान हो, तो अल्लाह उसे अधिक करता है और उसके सबब मुक्ति प्रदान करता है। फिर फ़रमाया : "फिर नबी, फरिश्ते और मोमिन सिफ़ारिश करेंगे" यह इस बात का प्रमाण है कि यह तीन प्रकार के लोग सिफ़ारिश करेंगे। लेकिन यह जानना ज़रूरी है कि किसी भी सिफ़ारिशकर्ता की सिफ़ारिश उसी समय हो पाएगी, जब अल्लाह उसे सिफ़ारिश की अनुमति देगा, जैसा कि पीछे गुज़र चुका है कि ईमान वाले अपने पालनहार से अपने भाइयों की क्षमा माँगेंगे, तो अल्लाह उन्हें अनुमति देगा और कहेगा कि जाओ और जिसके दिल में एक दीनार के बराबर भी ईमान हो उसे निकाल लाओ। आपने कहा : "तथा सर्वशक्तिमान अल्लाह कहेगा : अब मेरी सिफ़ारिश शेष रह गई है। चुनांचे जहन्नम से एक मुट्ठी उठाएगा और ऐसे लोगों को निकालेगा, जो जल चुके होंगे।" यहाँ अल्लाह की सिफ़ारिश से मुराद उसका इन यातनाग्रस्त लोगों पर दया करना है। आपके शब्द : "एक मुट्ठी उठाएगा" से अल्लाह की मुट्ठी की सिद्धि होती है। अल्लाह की किताब और उसके रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की सुन्नत के अंदर बहुत-से स्पष्ट प्रमाण मौजूद हैं, जिनसे अल्लाह के हाथ तथा मुट्ठी का सबूत मिलता है। लेकिन गलत अर्थ निकालने वाले और अर्थ से छेड़-छाड़ करने वाले लोग इन स्पष्ट प्रमाणों को ग्रहण नहीं करते और इनपर ईमान नहीं रखते। मगर, एक समय आएगा, जब उन्हें पता चल जाएगा कि अल्लाह और उसके रसूल की कही हई बात ही सत्य है और इस संदर्भ में वे पथभ्रष्टता के शिकार हुए हैं। अल्लाह जहन्नम से एक मुट्ठी उठाएगा और ऐसे लोगों को निकालेगा, जो जलकर कोयला हो चुके थे। आपने फ़रमाया : "फिर उन्हें जन्नत के सामने वाली नहर में डाला जाएगा, जिसे आब-ए-हयात (जीवन जल) कहा जाता है। वे उसके दोनों किनारों पर इस प्रकार उग उठेंगे।" यानी उन्हें जन्नत के आस-पास स्थित एक नहर में डाला जाएगा, जिसके पानी आब-ए-हयात के तौर पर जाना जाएगा। यानी ऐसा पानी जिसमें डुबकी लगाने वाला जीवित हो जाए। इसमें डाले जाने से इन लोगों के मांस, आँखें और हड्डियाँ जो आग में जल चुकी थीं, इस नदी के किनारे उग आएँगी, "जैसे सैलाब में आई हुई मट्टी में पौधे उग आते हैं। तुमने किसी चट्टान के किनारे और पेड़ के किनारे पौधों को उगते देखा होगा। उनका जो भाग सूर्य की ओर होता है, वह हरा होता है और जो साए की ओर होता है, वह सफ़ेद होता है।" इससे तात्यपर्य यह है कि उनके मांस तेज़ी से निकल आएँगे। क्योंकि सैलाब में आई हुई मट्टी में पौधे बड़ी तेज़ी से उगते हैं। यही कारण है कि उनका छाँव की ओर वाला भाग सफ़ेद होता है और धूप की ओर वाला भाग हरा होता है। क्योंकि वह कमज़ोर तथा कोमल होता है। लेकिन इससे यह लाज़िम नहीं आता कि यह लोग भी इसी प्रकार उगेंगे और उसका जन्नत की ओर वाला भाग सफ़ेद और जहन्नम की ओर वाला भाग हरा होगा। बल्कि यहाँ मुराद तेज़ी से निकलने तथा कोमलता में उन लोगों की उक्त पौधों से समानता दिखाना है। यही कारण है कि आगे फ़रमाया : "चुनांचे वे ऐसे निकलेंगे, जैसे मोती हों।" यानी उनकी त्वचा मोती की तरह साफ़-सुथरी और सुंदर होगी। आगे आपने कहा : "फिर उनकी गरदनों पर मुहरें लगा दी जाएँगी।" एक अन्य रिवायत के अनुसार इन मुहरों में लिखा रहेगा : "दयावान अल्लाह के द्वारा मुक्त किए हुए लोग" उसके बाद फ़रमाया : "और वे जन्नत में प्रवेश करेंगे। उन्हें देख जन्नत वाले कहेंग : ये दयावान अल्लाह के द्वारा मुक्त किए हुए लोग हैं। अल्लाह ने इन्हें इनके द्वारा किए गए किसी कार्य और इनके द्वारा आगे भेजी गई किसी भलाई के बिना ही जन्नत में दाख़िल किया है।" यानी उन्होंने दुनिया में कोई सत्कर्म नहीं किया था। उनकी एकमात्र पूंजी ईमान था। यानी इस बात की गवाही देना कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं है और रसूलों पर ईमान। आपने कहा कि फिर उनसे कहा जाएगा : " तुम्हारे लिए वह है, जो तुम देख रहे हो और उसके साथ उसके समान भी।" इससे ऐसा प्रतीत होता है कि यह लोग जन्नत के खाली स्थानों में प्रवेश करेंगे, यही कारण है कि इनसे यह बात कही जाएगी।