عن جابر بن عبد الله رضي الله عنهما قال: «قضى رسول الله صلى الله عليه وسلم بالعُمْرَى لمن وهبت له». وفي لفظ: «من أُعمِر عمرى له ولعقبه؛ فإنها للذي أعطيها، لا ترجع إلى الذي أعطاها؛ لأنه أعطى عطاء وقعت فيه المواريث». وقال جابر: «إنما العمرى التي أجازها رسول الله صلى الله عليه وسلم ، أن يقول: "هي لك ولعقبك"، فأما إذا قال: "هي لك ما عشت"؛ فإنها ترجع إلى صاحبها». وفي لفظ لمسلم: «أمسكوا عليكم أموالكم ولا تفسدوها، فإنه من أُعمِر عمرى فهي للذي أُعمِرها حيًّا وميتًا ولعقبه».
[صحيح] - [متفق عليه. واللفظ الثاني: رواه مسلم (1625) بلفظ: " أيما رجل أعمر رجلا عمرى له .." أما قوله" وقال جابر": فرواه مسلم ح(1625). ولفظ: " أمسكوا عليكم..": رواه مسلم ح(1625)]
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जाबिर बिन अब्दुल्लाह (रज़ियल्लाहु अनहुमा) कहते हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने किसी को जीवन भर के लिए दी गई वस्तु के बारे में निर्णय दिया कि वह उसी की है, जिसे दी गई है। तथा एक रिवायत में हैः जिसे कोई वस्तु उसके जीवन भर तथा उसके उत्तराधिकारियों के लिए दी गई तो वह उसी की है, जिसे वह दी गई है। वह देने वाले की ओर नहीं लौटेगी, क्योंकि उसने ऐसी वस्तु दी है, जिसमें विरासत सिद्ध हो गई है। जाबिर (रज़ियल्लाहु अनहु) कहते हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने जीवन भर के लिए दिए गए उसी दान को जायज़ क़रार दिया है, जिसमें देने वाला कहे कि यह तेरे तथा तेरे उत्तराधिकारियों के लिए है। लेकिन, यदि यह कहे कि यह तेरे लिए तेरे जीवन भर तक है तो वह (उसके मृत्यु पश्चात) देने वाले की ओर लौट जाएगा। तथा मुस्लिम के शब्द हैंः अपने धन को रोके रखो और उसे बर्बाद न करो, क्योंकि जिसने जीवन भर के लिए कोई दान दिया तो वह उसका है, जिसे जीवन भर के लिए दिया गया है, उसके जीवन में भी और मरने के बाद भी तथा उसके उत्तराधिकारियों का है।
सह़ीह़ - इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

उमरा' और इसी तरह 'रुक़बा' दो तरह के दान हैं, जो लोग जाहिलियत के ज़माने में किया करते थे। उस समय एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को घर आदि यह कहते हुए देते थे कि मैंने तुझे यह घर जीवन भर के लिए दिया, अथवा मैंने तुझ यह घर तुम्हारे जीवन भर अथवा मेरे जीवन भर के लिए दिया। इस तरह का दान करने के बाद लोग दान प्राप्त करने वाले व्यक्ति की मृत्यु की प्रतीक्षा में रहते थे, ताकि दान की हुई वस्तु को वापस ले सकें। ऐसे में, शरीयत ने दान को तो बरक़रार रखा, लेकिन आम तौर पर लगाई जाने वाली शर्त अर्थात वापस लेने को ख़ारिज कर दिया। क्योंकि दान की हुई वस्तु को वापस लेने वाला व्यक्ति उस कुत्ते के समान है, जो उलटी करके दोबारा उसे खा ले। यही कारण है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने जीवन भर के लिए दी हुई वस्तु के बारे में यह निर्णय दिया कि वह वस्तु उसी की है, जिसे दान की गई है और उसके बाद उसके उत्तराधिकारियों की है। तथा आपने लोगों को अपने धन की सुरक्षा करने का आदेश देते हुए फ़रमायाः "अपने धन को रोके रखो और उसे बर्बाद न करो, क्योंकि जिसने जीवन भर के लिए कोई दान दिया, तो वह उसका है, जिसे जीवन भर के लिए दिया गया है, उसके जीवन में भी और मरने के बाद भी तथा उसके उत्तराधिकारियों का है।"

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