عن عبد الله بن عمر رضي الله عنهما عن النبي صلى الله عليه وسلم قال: «إن الله عز وجل يقبل تَوْبَةَ العَبْدِ ما لم يُغَرْغِرْ».
[حسن] - [رواه الترمذي وابن ماجه وأحمد]
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अब्दुल्लाह बिन उमर- रज़ियल्लाहु अन्हुमा- का वर्णन है कि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः निश्चय ही, अल्लाह बंदे की तौबा उस समय तक कबूल करता है, जब तक उसकी जान गले में न आ जाए।
ह़सन - इसे इब्ने माजा ने रिवायत किया है ।

व्याख्या

अल्लाह बंदे की तौबा उस समय तक ग्रहण करता है, जब तक प्राण कंठ तक न पहुँच जाए। जब प्राण कंठ तक पहुँच जाता है, तो तौबा ग्रहण नहीं होती। अल्लाह तआला का फ़रमान है : "और उनकी तौबा (क्षमा याचना) स्वीकार्य नहीं, जो बुराईयाँ करते रहते हैं, यहाँ तक कि जब उनमें से किसी की मौत का समय आ जाता है, तो कहता हैः अब मैंने तौबा कर ली।" [सूरा अन-निसा, आयत संख्या : 18]

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