+ -

عن أبي هريرة رضي الله عنه قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم : «مَا يَجِدُ الشَّهيد من مَسِّ القتل إلا كما يَجِدُ أَحَدُكُمْ من مَسِّ القَرْصَةِ».
[حسن] - [رواه الترمذي وابن ماجه والنسائي والدارمي وأحمد]
المزيــد ...

अबू हुरैरा- रज़ियल्लाहु अन्हु- का वर्णन है कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः शहीद क़त्ल की व्यथा केवल उतनी ही महसूस करता है, जितनी तुममें से कोई चींटी के डंक मारने से महसूस करता है।
[ह़सन] - [इसे इब्ने माजा ने रिवायत किया है । - इसे तिर्मिज़ी ने रिवायत किया है। - इसे नसाई ने रिवायत किया है। - इसे अह़मद ने रिवायत किया है। - इसे दारिमी ने रिवायत किया है।]

व्याख्या

हदीस : जब कोई इनसान अल्लाह के मार्ग में शहीद होता है, तो उसे वध किए जाने की व्यथा केवल उतनी ही होती है, जितनी हममें से किसी को चींटी के काटने से होती है। दारिमी की रिवायत में "من ألم القتل" और "من ألم القرصة" के शब्द आए हैं। यानी शहीद को अन्य लोगों की भाँति मृत्यु की कठिनाइयों और परेशानियों का सामना करना नहीं पड़ता। उसे मृत्य के समय अधिक से अधिक वही कष्ट होता है, जो हमें चींटी के काटने से होता है, जो कुछ ही क्षणों में दूर हो जाता है और फिर लगता ही नहीं कि कहीं कुछ हुआ था। यह दरअसल शहीद पर अल्लाह की अनुकंपा है। जब उसने उच्च एवं महान अल्लाह के मार्ग में अपने प्राण को प्रस्तुत कर दिया, तो अल्लाह ने उसके लिए मृत्यु के कष्ट को आसान कर दिया।

अनुवाद: अंग्रेज़ी उर्दू स्पेनिश इंडोनेशियाई उइग़ुर बंगला फ्रेंच तुर्की रूसी बोस्नियाई सिंहली चीनी फ़ारसी तगालोग कुर्दिश होसा पुर्तगाली सवाहिली
अनुवादों को प्रदर्शित करें
अधिक