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عن أبي هُرَيْرَةَ رضي الله عنه مرفوعًا: «لا يُصَلِّي أحدكم في الثَّوْبِ الواحد، ليس على عاتقيه منه شيء».
[صحيح] - [متفق عليه]
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अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से रिवायत है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया : "तुममें से कोई एक कपड़े में इस तरह नमाज़ न पढ़े कि उसके दोनों कंधों पर कपड़े का कोई भाग न हो।"
[सह़ीह़] - [इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।]

व्याख्या

आदमी को चाहिए कि नमाज़ पढ़ने के लिए अच्छी हालत में आए; क्योंकि अल्लाह तआ़ला का फ़रमान हैः "يا بني آدم خُذُوا زِينَتَكُمْ عِنْدَ كل مَسجدٍ" (ऐ आदम की संतान, प्रत्येक नमाज़ के समय अपनी शोभा धारण करो।) दूसरी बात यह है कि जब बादशाहों और बड़े लोगों से मुलाक़ात के लिए भी इनसान अच्छे कपड़ों और साथ-सुथरा होकर जाता है, तो बादशों के बादशाह और सरदारों के सरदार के आगे उसे कैसे उपस्थित होना चाहिए? यही कारण है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने इस बात पर उभारा है कि आदमी इस हाल में नमाज़ न पढ़े कि उसके दोनों कंधे खुले हुए हों, जबकि उसके पास दोनों कंधों अथवा एक कंधे को ढाँपने के लिए कपड़ा मौजूद हो। आपने मना किया कि आदमी अपने रब से बात करने के लिए इस तरह खड़ा न हो।

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