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عن علي بن أبي طالب رضي الله عنه قال: «ما كنتُ لأقيمَ حَدّاً على أحد فيموت، فأجدَ في نَفسِي، إلا صاحب الخمر، فإنه لو مات وَدَيْتُهُ، وذلك أن رسول الله صلى الله عليه وسلم لم يَسُنَّهُ».
[صحيح] - [رواه البخاري]
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अली बिन अबी तालिब (रज़ियल्लाहु अन्हु) से रिवायत है, उन्होंने फ़रमाया कि अगर मैं किसी को शरई हद लगाऊँ और वह मर जाए, तो मुझे कोई अफ़सोस न होगा। लेकिन अगर शराबी को हद लगाऊँ और वह मर जाए, तो उसकी दियत (हरजाना) दूँगा। क्योंकि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उसके बारे में कोई ख़ास हद मुक़र्रर नहीं फरमाई है।
[सह़ीह़] - [इसे बुख़ारी ने रिवायत किया है।]

व्याख्या

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