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عن جعفر بن محمد، عن أبيه، قال: دخلنا على جابر بن عبد الله، فسأل عن القوم حتى انتهى إلي، فقلت: أنا محمد بن علي بن حسين، فأهوى بيده إلى رأسي فنزع زري الأعلى، ثم نزع زري الأسفل، ثم وضع كفه بين ثديي وأنا يومئذ غلام شاب، فقال: مرحبا بك، يا ابن أخي، سَلْ عما شِئْتَ، فسألته، وهو أعمى، وحضر وقت الصلاة، فقام في نَسَاجَة مُلتحفا بها، كلما وضعها على منَكْبِهِ رَجَعَ طَرَفَاهَا إليه من صغرها، ورداؤه إلى جنبه، على المِشْجَبِ، فصلى بنا، فقلت: أخبرني عن حجة رسول الله صلى الله عليه وسلم، فقال: بيده فعقد تسعا، فقال: إن رسول الله صلى الله عليه وسلم مكث تسع سنين لم يحج، ثم أذَّنَ في الناس في العاشرة، أن رسول الله صلى الله عليه وسلم حاج، فقدم المدينة بشر كثير، كلهم يلتمس أن يأتَمَّ برسول الله صلى الله عليه وسلم، ويعمل مثل عمله، فخرجنا معه، حتى أتينا ذا الحليفة، فولدت أسماء بنت عميس محمد بن أبي بكر، فأرسلت إلى رسول الله صلى الله عليه وسلم: كيف أصنع؟ قال: «اغتسلي، واستَثْفِرِي بثوب وأحرمي» فصلى رسول الله صلى الله عليه وسلم في المسجد، ثم ركب القَصْوَاءَ، حتى إذا استوت به ناقته على البَيْدَاءِ، نظرت إلى مَدِّ بصري بين يديه، من راكب وماش، وعن يمينه مثل ذلك، وعن يساره مثل ذلك، ومن خلفه مثل ذلك، ورسول الله صلى الله عليه وسلم بين أظهرنا، وعليه ينزل القرآن، وهو يعرف تأويله، وما عمل به من شيء عملنا به، فأهل بالتوحيد «لبيك اللهم، لبيك، لبيك لا شريك لك لبيك، إن الحمد والنعمة لك، والملك لا شريك لك» وأهل الناس بهذا الذي يهلون به، فلم يرد رسول الله صلى الله عليه وسلم عليهم شيئا منه، ولزم رسول الله صلى الله عليه وسلم تلبيته، قال جابر رضي الله عنه: لسنا ننوي إلا الحج، لسنا نعرف العمرة، حتى إذا أتينا البيت معه، استلم الركن فرمل ثلاثا ومشى أربعا، ثم نفذ إلى مقام إبراهيم عليه السلام، فقرأ: ﴿واتخذوا من مقام إبراهيم مصلى﴾ [البقرة: 125] فجعل المقام بينه وبين البيت، فكان أبي يقول - ولا أعلمه ذكره إلا عن النبي صلى الله عليه وسلم -: كان يقرأ في الركعتين قل هو الله أحد وقل يا أيها الكافرون، ثم رجع إلى الركن فاستلمه، ثم خرج من الباب إلى الصفا، فلما دنا من الصفا قرأ: ﴿إن الصفا والمروة من شعائر الله﴾ [البقرة: 158] «أبدأ بما بدأ الله به» فبدأ بالصفا، فرقي عليه، حتى رأى البيت فاستقبل القبلة، فوحد الله وكبره، وقال: «لا إله إلا الله وحده لا شريك له، له الملك وله الحمد وهو على كل شيء قدير، لا إله إلا الله وحده، أنجز وعده، ونصر عبده، وهزم الأحزاب وحده» ثم دعا بين ذلك، قال: مثل هذا ثلاث مرات، ثم نزل إلى المروة، حتى إذا انصبت قدماه في بطن الوادي سعى، حتى إذا صعدتا مشى، حتى أتى المروة، ففعل على المروة كما فعل على الصفا، حتى إذا كان آخر طوافه على المروة، فقال: «لو أني استقبلت من أمري ما استدبرت لم أَسُقِ الهدي، وجعلتها عمرة، فمن كان منكم ليس معه هدي فليحل، وليجعلها عمرة»، فقام سراقة بن مالك بن جعشم، فقال: يا رسول الله، ألعامنا هذا أم لأبد؟ فشبك رسول الله صلى الله عليه وسلم أصابعه واحدة في الأخرى، وقال: «دخلت العمرة في الحج» مرتين «لا بل لأبد أبد» وقدم علي من اليمن ببدن النبي صلى الله عليه وسلم، فوجد فاطمة رضي الله عنها ممن حل، ولبست ثيابا صبيغا، واكتحلت، فأنكر ذلك عليها، فقالت: إن أبي أمرني بهذا، قال: فكان علي يقول، بالعراق: فذهبت إلى رسول الله صلى الله عليه وسلم مُحَرِّشاً على فاطمة للذي صنعت، مستفتيا لرسول الله صلى الله عليه وسلم فيما ذكرت عنه، فأخبرته أني أنكرت ذلك عليها، فقال: «صدقت صدقت، ماذا قلت حين فرضت الحج؟» قال قلت: اللهم، إني أهل بما أهل به رسولك، قال: «فإن معي الهدي فلا تحل» قال: فكان جماعة الهدي الذي قدم به علي من اليمن والذي أتى به النبي صلى الله عليه وسلم مائة، قال: فحل الناس كلهم وقصروا، إلا النبي صلى الله عليه وسلم ومن كان معه هدي، فلما كان يوم التروية توجهوا إلى منى، فأهلوا بالحج، وركب رسول الله صلى الله عليه وسلم، فصلى بها الظهر والعصر والمغرب والعشاء والفجر، ثم مكث قليلا حتى طلعت الشمس، وأمر بِقُبَّةٍ من شَعَرٍ تُضْرَبُ له بنِمَرِةَ، فسار رسول الله صلى الله عليه وسلم ولا تشك قريش إلا أنه واقف عند المشعر الحرام، كما كانت قريش تصنع في الجاهلية، فأجاز رسول الله صلى الله عليه وسلم حتى أتى عرفة، فوجد القبة قد ضربت له بنمرة، فنزل بها، حتى إذا زاغت الشمس أمر بالقصواء، فرحلت له، فأتى بطن الوادي، فخطب الناس وقال: «إن دماءكم وأموالكم حرام عليكم، كحرمة يومكم هذا في شهركم هذا، في بلدكم هذا، ألا كل شيء من أمر الجاهلية تحت قدمي موضوع، ودماء الجاهلية موضوعة، وإن أول دم أضع من دمائنا دم ابن ربيعة بن الحارث، كان مسترضعا في بني سعد فقتلته هذيل، وربا الجاهلية موضوع، وأول ربا أضع ربانا ربا عباس بن عبد المطلب، فإنه موضوع كله، فاتقوا الله في النساء، فإنكم أخذتموهن بأمان الله، واستحللتم فروجهن بكلمة الله، ولكم عليهن أن لا يوُطئن فُرُشَكُم أحدا تكرهونه، فإن فعلن ذلك فاضربوهن ضربا غير مُبَرِّحٍ، ولهن عليكم رزقهن وكسوتهن بالمعروف، وقد تركت فيكم ما لن تضلوا بعده إن اعتصمتم به، كتاب الله، وأنتم تسألون عني، فما أنتم قائلون؟» قالوا: نشهد أنك قد بلغت وأديتَ ونصحت،َ فقال: بإصبعه السبابة، يرفعها إلى السماء ويَنْكُتُها إلى الناس «اللهم، اشهد، اللهم، اشهد» ثلاث مرات، ثم أذن، ثم أقام فصلى الظهر، ثم أقام فصلى العصر، ولم يصل بينهما شيئا، ثم ركب رسول الله صلى الله عليه وسلم، حتى أتى الموقف، فجعل بطن ناقته القصواء إلى الصخرات، وجعل حبل المشاة بين يديه، واستقبل القبلة، فلم يزل واقفا حتى غربت الشمس، وذهبت الصُّفْرَة قليلا، حتى غاب القُرص، وأرْدَفَ أسامة خلفه، ودفع رسول الله صلى الله عليه وسلم وقد شَنَقَ للقصواء الزِّمَامَ حتى إن رأسها ليصيب مَوْرِكَ رَحْلِهِ، ويقول بيده اليمنى «أيها الناس، السكينة السكينة». كلما أتى حبلا من الحبال أرخى لها قليلا، حتى تصعد، حتى أتى المزدلفة، فصلى بها المغرب والعشاء بأذان واحد وإقامتين، ولم يسبح بينهما شيئا، ثم اضطجع رسول الله صلى الله عليه وسلم حتى طلع الفجر، وصلى الفجر، حين تبين له الصبح، بأذان وإقامة، ثم ركب القصواء، حتى أتى المشعر الحرام، فاستقبل القبلة، فدعاه وكبره وهلله ووحده، فلم يزل واقفا حتى أسفر جدا، فدفع قبل أن تطلع الشمس، وأردف الفضل بن عباس، وكان رجلا حسن الشعر أبيض وسيما، فلما دفع رسول الله صلى الله عليه وسلم مرت به ظعن يجرين، فطفق الفضل ينظر إليهن، فوضع رسول الله صلى الله عليه وسلم يده على وجه الفضل، فحول الفضل وجهه إلى الشق الآخر ينظر، فحول رسول الله صلى الله عليه وسلم يده من الشق الآخر على وجه الفضل، يصرف وجهه من الشق الآخر ينظر، حتى أتى بطن محسر، فحرك قليلا، ثم سلك الطريق الوسطى التي تخرج على الجمرة الكبرى، حتى أتى الجمرة التي عند الشجرة، فرماها بسبع حصيات، يكبر مع كل حصاة منها، مثل حصى الخذف، رمى من بطن الوادي، ثم انصرف إلى المنحر، فنحر ثلاثا وستين بيده، ثم أعطى عليا، فنحر ما غبر، وأشركه في هديه، ثم أمر من كل بدنة ببضعة، فجعلت في قدر، فطبخت، فأكلا من لحمها وشربا من مرقها، ثم ركب رسول الله صلى الله عليه وسلم فأفاض إلى البيت، فصلى بمكة الظهر، فأتى بني عبد المطلب، يسقون على زمزم، فقال: «انزعوا، بني عبد المطلب، فلولا أن يغلبكم الناس على سقايتكم لنَزَعْتْ ُمعكم» فناولوه دلوا فشرب منه.
[صحيح] - [رواه مسلم]
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जाफ़र बिन मुहम्मद अपने पिता से रिवायत करते हैं कि उन्होंने कहाः हम जाबिर बिन अब्दुल्लाह के पास आए, तो उन्होंने लोगों के बारे में (जो उनके पास आए थे) पूछते हुए मुझ तक पहुँचे। मैंने कहाः मैं मुहम्मद बिन अली बिन हुसैन हूँ। यह सुन मेरे सर पर हाथ रखा और मेरा ऊपर का बटन खोला और फिर निचला बटन खोला। फिर मेरी हथेली मेरे सीने पर रखी। मैं उस समय नवयुवक लड़का था। उन्होंने कहाः ऐ मेरे भतीजे! तुम्हारा यहाँ स्वागत है। जो चाहो पूछो। मैंने उनसे कुछ बातें पूछीं। वह अंधे हो चुके थे। इस बीच नमाज़ का समय हो गया और वह अपनी बुनी हुई चादर ओढ़कर खड़े हो गए। वह इतनी छोटी थी कि जब भी वह उसे अपने कंधों पर डालते, उसके दोनों किनारे उनकी ओर लौट आते। जबकि उनकी (बड़ी) चादर उनके बगल में खूँटी पर थी। इसी अवस्था में उन्होंने हमें नमाज़ पढ़ाई। इसलिए मैंने कहाः मुझे अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के हज के बारे में बताएँ। उन्होंने अपने हाथ के इशारे से नौ तक गिना और कहाः अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) नौ साल रहे और हज नहीं किया। फिर दसवें साल लोगों के बीच ऐलान किया कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) हज करने वाले हैं। यह सुन बहुत-से लोग मदीने आ गए। सब चाहते थे कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ चलें और आपके अमल के अनुसार अमल करें। हम आपके साथ निकले, यहाँ तक कि हम ज़ुल- हुलैफ़ा पहुँचे, तो असमा बिंत उमैस ने मुहम्मद बिन अबू बक्र को जन्म दिया। उन्होंने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को संदेश भेजा कि अब मैं क्या करूँ? आपने कहाः स्नान करो और पट्टी बाँधकर एहराम बाँध लो। अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने मस्जिद में नमाज़ पढ़ाई और क़सवा नामी (ऊँटनी) पर सवार हो गए। आपकी ऊँटनी बैदा नामक नाम स्थान में खड़ी हुई, तो मैंने अपने सामने, जहाँ तक नज़र गई, सवार और पैदल चलने वाले देखे। जबकि आपके दाएँ भी इसी तरह था, आपके बाएँ भी इसी तरह था और आपके पीछे भी इसी तरह था। आप हमारे बीच में थे और आपपर क़ुरआन उतर रहा था, जिसके अर्थ से आप अवगत थे। आप जो करते, हम भी वही करते। आपने एकेश्वरवाद पर आधारित तलबिया पढ़ते हुए कहाः मैं उपस्थित हूँ, ऐ अललाह, मैं उपस्थित हूँ। तेरा कोई साझी नहीं। मैं उपस्थित हूँ। सब प्रशंसा और नीमत तेरी है और राज्य (भी तेरा है)। तेरा कोई साझी नहीं है। और लोग भी यही तलबिया पढ़ते रहे, जो (आज भी लोग) पढ़ते हैं। अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उन्हें इससे ज़रा भी नहीं रोका। और अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) अपना तलबिया पढ़ते रहे। जाबिर (रज़ियल्लाहु अनहु) कहते हैंः हमारा इरादा केवल हज का था। हमें उमरे का पता नहीं था, यहाँ तक कि हम आपके साथ अल्लाह का घर पहुँचे। आपने (रुक्न) हजर-ए-असवद को बोसा दिया। तीन बार दौड़े तथा चार बार साधारण चाल चले (और इस तरह तवाफ़ पूरा किया)। फिर मक़ाम-ए-इबराहीम की ओर गए और यह आयत पढ़ीः {मक़ाम-ए-इबराहीम को नमाज़ का स्थान बनाओ।} [अल-बक़राः 125] फिर आपने मक़ाम-ए-इबराहीम को अपने तथा काबा के बीच रखा (और नमाज़ पढ़ी)। जाफ़र कहते हैं कि मेरे पिता कहा करते थे और मैं समझता हूँ कि उन्होंने इसे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ही से नक़ल किया होगा कि आप इन दो रकातों में 'क़ुल हुवल्लाहु अहद' और 'क़ुल या-अय्युहल- काफ़िरून' पढ़ते थे। फिर आप रुक्न (हजर-ए-असवद) के पास गए और उसे बोसा दिया। फिर द्वार से निकलकर सफ़ा की ओर गए। जब सफ़ा के निकट आए, तो यह आयत पढ़ीः {निश्चय ही सफ़ा और मरवा अल्लाह की निशानियों में से हैं।} [अल-बक़राः 158] (और कहा) "मैं वहीं से आरंभ करता हूँ, जहाँ से अल्लाह ने आरंभ किया है।" आपने सफ़ा से आरंभ किया, उसपर चढ़े, यहाँ तक काबे को देखा, उसकी ओर चेहरा किया, अल्लाह की एकत्व का वर्णन किया, उसकी बड़ाई बयान की और कहाः "अल्लाह के सिवा कोई बंदगी के लायक़ नहीं, वह अकेला है, उसका कोई साझी नहीं, उसी का राज्य है, उसी की प्रशंसा है और वह हर चीज़ की शक्ति रखता है। अल्लाह के सिवा कोई बंदगी के लायक़ नहीं, जो अकेला है, जिसने अपना वादा पूरा किया, अपने बंदे की मदद की और अकेले सारे गिरोहों को पराजित किया।" फिर इसके बीच आपने दुआ की। तीन बार इसी तरह कहा। फिर मरवा की ओर उतरे। यहाँ तक कि जब आपके क़दम घाटी के निचले भाग पर पड़े, तो दौड़ने लगे, यहाँ तक जब आपके क़दम चढ़ाई पर चढ़ने लगे, तो चलने लगे, यहाँ तक कि आप मरवा पर आए। फिर मरवा पर उसी तरह किया, जैसे सफ़ा पर किया था। यहाँ तक कि जब मरवा पर आपका अंतिम चक्कर था, तो फ़रमायाः "अगर मैंने पहले वह जान लिया होता, जो बाद में जाना, तो क़ुर्बानी का जानवर साथ में न लाता और इसे उमरा बना लेता। अतः, तुममें से जिसके पास क़ुर्बानी का जानवर न हो, वह हलाल हो जाए और इसे उमरा बना ले।" इसपर सुराक़ा बिन मालिक बिन जोशुम खड़े हुए और कहने लगेः ऐ अल्लाह के रसूल! क्या यह हमारे इसी वर्ष के लिए है या हमेशा के लिए? अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अपने एक हाथ की उँगलियाँ दूसरे में डालीं और दो बार कहाः "हज उमरे में दाख़िल हो गया।" (आगे कहा) "नहीं, बल्कि हमेशा के लिए है।" फिर अली (रज़ियल्लाहु अनहु) नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की क़ुर्बानी के जानवर लेकर यमन से आए, तो फ़ातिमा (रज़ियल्लाहु अनहा) को उन लोगों में से पाया, जो हलाल हो चुके थे। वह रंगीन कपड़ा भी पहन चुकी थीं और सुरमा भी लगा चुकी थीं। उन्होंने फ़ातिमा (रज़ियल्लाहु अनहा) के इस कार्य को गलता ठहराया, तो वह बोलींः मेरे पिता ने मुझे इसका आदेश दिया है। वर्णनकर्ता कहते हैंः अली (रज़ियल्लाहु अनहु) इराक़ में कहा करते थेः मैं अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास फ़ातिमा की शिकायत करने और उन्होंने आपकी ओर मंसूब करके जो कुछ कहा था, उसके बारे में पूछने के लिए, गया और बताया कि मैंने उनके इस कार्य को ग़लत कहा है। आपने कहाः "उसने सच कहा, उसने सच कहा। तुमने हज की नीयत करते समय क्या कहा था?" उन्होंने कहा कि मैंने कहा थाः ऐ अल्लाह, मैं उसी का तलबिया पढ़ता हूँ, जिसका तलबिया तेरे रसूल ने पढ़ा है। आपने कहाः "मेरे साथ तो क़ुर्बानी है। अतः, तुम हलाल नहीं हो सकते।" वर्णनकर्ता कहते हैं कि वह क़ुर्बानी के जानवर जो अली (रज़ियल्लाहु अनहु) यमन से लाए थे और जो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) लाए थे, उनकी कुल संख्या एक सौ थी। वर्णनकर्ता कहते हैंः सब लोगों ने एहराम खोल दिए और बाल कटवा लिए, सिवाय नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और उन लोगों के, जो क़ुर्बानी साथ लाए थे। फिर जब तरविया का दिन आया, तो सब लोग मिना की ओर चले और सबने हज का एहराम बाँधा। अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) सवार हुए और वहाँ ज़ुहर, अस्र, मग़रिब, इशा और फ़ज्र की नमाज़ें पढ़ीं। फिर कुछ देर ठहरे, यहाँ तक कि सूरज निकल आया। आपके कहने पर नमिरा में बालों से बुना हुआ एक ख़ैमा आपके लिए लगाया गया। फिर आप चले। क़ुरैश को इस बात में कोई संदेह नहीं था कि आप मशअर-ए-हराम के पास ठहरेंगे, जैसा कि जाहिलिय्यत काल में वे करते थे। लेकिन अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) वहाँ गुज़रते हुए अरफ़ा आ गए। देखा कि वहाँ ख़ैमा लगा हुआ है, तो वहीं उतर पड़े। यहाँ तक कि जब सूरज ढल गया, तो आपके आदेश से क़सवा ऊँटनी पर पालान डाला गया। तो आप घाटी के बीच में आए और लोगों संबोधित करते हुए कहाः "निश्चय तुम्हारे रक्त और तुम्हारे धन तुम्हारे लिए सम्मान्य हैं, जिस तरह तुम्हारा यह दिन तुम्हारे इस महीने और तुम्हारे इस नगर में सम्मान्य है। सुन लो, जाहिलिय्यत की हर बात मेरे पाँव के नीचे मसल दी गई है और जाहिलिय्यत काल के रक्त के दावे भी निरस्त किए जाते हैं। और सबसे पहले मैं अपने रक्त के दावों में से इब्ने रबीआ बिन हारिस के रक्त के दावे को निरस्त करता हूँ, जो बनू साद की एक महिला का दूध पी रहा था कि हुज़ैल ने उसका वध कर दिया। मैं जाहिलिय्यत के सूद को भी निरस्त करता हूँ। पहला सूद जिसे मैं निरस्त करता हूँ, हमारा सूद यानी अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब का सूद है। उसे पूरे तौर पर निरस्त किया जाता है। तुम स्त्रियों के बारे में अल्लाह से डरो, क्योंकि तुमने उनको अल्लाह को वचन देकर लिया है और अल्लाह के आदेश से उनकी शर्मगाहों को हलाल किया है और तुम्हारा उनपर यह हक़ है कि तुम्हारे बिस्तर पर किसी को आने न दें कि तुम उसे बुरा जानते हो। यदि वे ऐसा करें, तो उन्हें मारो, लेकिन निष्ठुरता से नहीं। तथा उनका तुम्हारे ऊपर यह हक़ है कि उन्हें भले तरीक़े से खिलाओ और पहनाओ। मैं तुम्हारे बीच एक ऐसी वस्तु छोड़े जा रहा हूँ, यदि तुम उसे पकड़े रहोगे, तो हरगिज़ पथभ्रष्ट नहीं हो सकते अर्थात, अल्लाह की किताब। तुमसे मेरे बारे में पूछा जाएगा, तो तुम क्या कहने वाले हो?" लोगों ने कहाः हम गवाही देंगे कि आपने पहुँचाया, अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वाह किया और शुभचिंतन से काम लिया। आपने अपनी शहादत की उँगली आकाश की ओर उठाते हुए और लोगों की ओर इशारा करते हुए तीन बार कहाः "ऐ अल्लाह, तू गवाह रह! ऐ अल्लाह, तू गवाह रह!" फिर आपने अज़ान देने तथा इक़ामत कहने को कहा और ज़ुहर की नमाज़ पढ़ी। फिर इक़ामत देने का कहा और अस्र की नमाज़ पढ़ी। दोनों के बीच में कोई नमाज़ नहीं पढ़ी। फिर अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) सवार हुए, यहाँ तक (मुज़दलिफ़ा में) ठहरने के स्थान तक पहुँचे। आपने अपनी ऊँटनी क़सवा के सीने की रुख़ चट्टानों की ओर रखा, अपने सामने चलने वालों का रास्ता रखा और क़िबले की ओर रुख़ किया। फिर आप ठहरे रहे, यहाँ तक कि सूरज डूब गया और कुछ पीलापन ख़त्म हुआ और सूरज की टिकिया ग़ायब हो गई, तो आपने उसामा (रज़ियल्लाहु अनहु) को सवारी के पीछे बिठाया और चल पड़े। आपने क़सवा (ऊँटनी) की लगाम इस तरह खींची कि क़रिब था कि ऊँटनी का सर कजावे के अगले भाग में स्थित पाँव रखने के स्थान से आ लगे। आप अपने दाहिने हाथ से इशारा करते हुए कहे जा रहे थेः "आराम से लोगो, आराम से!" जब आप किसी टीले के पास पहुँचते, तो उसकी लगाम कुछ ढीली कर देते, यहाँ तक कि वह उसमें चढ़ जाती। यहाँ तक आप मुज़दलिफ़ा पहुँच गए और वहाँ मग़रिब तथा इशा की नमाज़ एक अज़ान और दो इक़ामत से पढ़ी। उनके बीच में कोई नफ़ल नमाज़ नहीं पढ़ी। फिर अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) लेट गए, यहाँ तक फ़ज्र हो गई और स्पष्ट रूप से सुबह होने के बाद अज़ान तथा इक़ामत के साथ फ़ज्र की नमाज़ पढ़ी। फिर क़सवा पर सवार हुए, यहाँ तक कि मशअर-ए-हराम आए, तो क़िबले की ओर मुँह करके अल्लाह से दुआ की, उसकी बड़ाई बयान की, ला इलाहा इल्लल्लाहु कहा और उसके एकत्व का गुणगान किया। फिर वहीं खड़े रहे, यहाँ तक कि अच्छी तरह सवेरा हो गया, तो सूरज निकलने से पहले चल पड़े। फ़ज्ल बिन अब्बास को अपने पीछे बिठा लिया। वह एक सुंदर बाल वाले गोरे-चिट्टे और सुंदर व्यक्ति थे। जब अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) चल पड़े, तो कुछ स्त्रियाँ आपके पास से तेज़ी से चलती हुई गुज़रीं। फ़ज़्ल उनकी ओर देखने लगे, तो अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अपना हाथ फ़ज़्ल के चेहरे पर रख दिया, तो वह अपना चेहरा दूसरी ओर घुमाकर देखने लगे। आपने अपने हाथ को दूसरी ओर घुमाते हुए उनके चेहरे पर रख दिया, लेकिन वह अपना चेहा दूसरी ओर फेरकर देखते रहे, यहाँ तक कि मुहस्सर घाटी आ गए। यहाँ अपनी सवारी को कुछ तेज़ किया और दरमियानी रास्ता लिया, जो अल-जमरा अल-कुबरा पर जा निकलता है। आप उस जमरा पर पहुँचे, जो पेड़ के पास है। आपने घाटी के निटले भाग से उसे सात छोटे-छोटे कंकड़ मारे। हर कंकड़ के साथ आप अल्लाहु अकबर कहते थे। फिर क़ुर्बानी करने के स्थान की ओर प्रस्थान किया और अपने हाथ से क़र्बानी के तिरसठ जानवर ज़बह किए। फिर अली (रज़ियल्लाहु अनहु) को ज़िम्मेदारी दे दी और जो बच गए थे, उन्हें उन्होंने ज़बह किया। आपने अली (रज़ियल्लाहु अनहु) को अपनी क़ुर्बानी में शरीक किया था। फिर आपके आदेस से हर क़ुरबानी का एक-एक भाग हंडिया में डाला गया और पकाया गया, तो आप दोनों ने कुछ मांस खाया और कुछ शोरबा पिया। फिर अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) सवार हुए अल्लाह के घर (काबा) का तवाफ़-ए-इफ़ाज़ा किया तथा मक्के में ज़ुहर की नमाज़ पढ़ी। फिर बनू मुत्तलिब के पास आए, जो ज़मज़म पर पानी पिला रहे थे और कहाः "अब्दुल मुत्तलिब के बटो, पानी निकालो। अगर मुझे पानी पिलाने की तुम्हारी इस सेवा पर अन्य लोगों के हावी हो जाने का भय न होता, तो मैं भी तुम्हारे साथ पानी निकलाता।" फिर उन्होंने आपको एक डाल पानी पेश किया, तो आपने उसमें से पिया।
[सह़ीह़] - [इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।]

व्याख्या

अनुवाद: अंग्रेज़ी फ्रेंच बोस्नियाई चीनी फ़ारसी होसा
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