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अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़ज्र की नमाज़ के बाद सूरज निकलने तक तथा अस्र की नमाज़ के बाद सूरज डूबने तक नमाज़ पढ़ने से मना किया है।
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तीन समय ऐसे हैं, जिनमें अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) हमें नमाज़ पढ़ने अथवा अपने मुर्दों को दफ़नाने से मना करते थे: जब सूरज निकल रहा हो, यहाँ तक कि ऊँचा हो जाए, जब सूरज बीच आसमान में हो, यहाँ तक कि ढल जाए और जब सूरज डूबने लगे, यहाँ तक कि डूब जाए
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जब सूरज का किनारा दिखाई दे, तो नमाज़ पढ़ना बंद कर दो, यहाँ तक कि वह पूरे तौर पर ज़ाहिर हो जाए और जब सूरज का किनारा ग़ायब हो जाए, तो नमाज़ पढ़ना बंद कर दो, यहाँ तक कि वह पूरे तौर पर डूब जाए तथा सूरज डूबने एवं निकलने का समय देखकर ही नमाज़ न पढ़ो; क्योंकि सूरज शैतान के दो सींगों के बीच में निकलता है
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किसी को रात या दिन के जिस भाग में चाहे, इस घर का तवाफ़ (परिक्रमा) करने या इसमें नमाज़ पढ़ने से न रोको
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तुममें से जो लोग उपस्थित हैं, वे अनुपस्थित लोगों को यह बात पहुँचा दें कि फ़ज्र के बाद दो रकातों के सिवा कोई नमाज़ न पढ़ो
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अम्र बिन अबसा के इस्लाम लाने की घटना और नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- का उन्हें नमाज़ और वज़ू सिखाने का वर्णन।
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