عَنْ بُرَيْدَةَ رضي الله عنه قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صلّى الله عليه وسلم:

«مَنْ حَلَفَ، فَقَالَ: إِنِّي بَرِيءٌ مِنَ الْإِسْلَامِ، فَإِنْ كَانَ كَاذِبًا فَهُوَ كَمَا قَالَ، وَإِنْ كَانَ صَادِقًا فَلَنْ يَرْجِعَ إِلَى الْإِسْلَامِ سَالِمًا».
[صحيح] - [رواه أبو داود والنسائي في الكبرى وأحمد]
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बुरैदा (रज़ियल्लाहु अनहु) कहते हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया: जिसने क़सम खाते हुए कहा: मैं इस्लाम से बरी हूँ, और वह झूठा है, तो वह वैसा ही है, जैसा कि उसने कहा है और यदि वह सच्चा है, तो इस्लाम में सुरक्षित नहीं लौट सकेगा।
सह़ीह़ - इसे नसाई ने रिवायत किया है।

व्याख्या

जिसने क़सम खाई और कहा कि वह इस्लाम से बरी है, या फिर कहा कि वह यहूदी, ईसाई, काफ़िर या नास्तिक है, तो उसकी दो अवस्थाएँ हो सकती हैं : पहली अवस्था : उसने जिस बात की क़सम खाई है, उसमें झूठा हो। मसलन क़सम खाए कि यदि बात ऐसी और ऐसी हो, तो वह इस्लाम से बरी है। फिर, वह अपनी बताई हुई बात में झूठा भी हो। मसलन यदि उसने बताया कि आज ज़ैद यात्रा से वापस आ गया है और फिर अपनी बात की पुष्टि के लिए इस्लाम से बरी होने या यहूदी, ईसाई अथवा मुश्रिक होने की क़सम खा ली, जबकि उसे पता हो कि वह झूठ बोल रहा है, तो वह सचमुच अपने कहे अनुसार इस्लाम से बरी, यहूदी या ईसाई है। दूसरी अवस्था : वह अपनी बात में सच्चा हो। मसलन यदि इस्लाम से बरी होने या यहूदी या ईसाई होने की क़सम खाकर बताया कि आज ज़ैद अपनी यात्रा से वापस आ गया है या उसने ऐसा काम नहीं किया है, फिर वह अपनी बात में सच्चा भी है, तो इस अवस्था में भी वह इस्लाम की ओर सुरक्षित वापस नहीं होगा। जैसा कि अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने इस हदीस में उल्लेख किया है। बल्कि होगा यह कि इस अनुचित शब्द के उच्चारण के कारण उसके इस्लाम की संपूर्णता में कमी आ जाएगी।

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