عَنْ أَبِي ذَرٍّ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ أَنَّهُ سَمِعَ النَّبِيَّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَقُولُ:

«لاَ يَرْمِي رَجُلٌ رَجُلًا بِالفُسُوقِ، وَلاَ يَرْمِيهِ بِالكُفْرِ، إِلَّا ارْتَدَّتْ عَلَيْهِ، إِنْ لَمْ يَكُنْ صَاحِبُهُ كَذَلِكَ».
[صحيح] - [متفق عليه]
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अबू ज़र (रज़ियल्लाहु अनहु) से रिवायत है कि उन्होंने अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को फ़रमाते हुए सुना: जो व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति पर पापी अथवा काफ़िर होने का आरोप लगाएगा, वह उसी पर लौट आएगा, यदि वह व्यक्ति वास्तव में ऐसा न हो।
सह़ीह़ - इसे बुख़ारी ने रिवायत किया है।

व्याख्या

अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने इस बात को हराम घोषित किया है कि कोई किसी को ऐ फ़ासिक़ अथवा ऐ काफ़िर कहे। क्योंकि यदि वह ऐसा न हो, तो वह बात कहने वाले की ओर लौट आती है।

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