عَنْ أَنَسٍ رضي الله عنه أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ:

«إِذَا تَوَضَّأَ أَحَدُكُمْ وَلَبِسَ خُفَّيْهِ فَلْيُصَلِّ فِيهِمَا، وَلْيَمْسَحْ عَلَيْهِمَا ثُمَّ لَا يَخْلَعْهُمَا إِنْ شَاءَ إِلَّا مِنْ جَنَابَةٍ».
[صحيح] - [رواه الدارقطني]
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उमर -रज़ियल्लाहु अनहु- से मौक़ूफ़ तौर और अनस- रज़ियल्लाहु अनहु- से मरफ़ू तौर पर रिवायत है : "c2">“जब तुममें से कोई वज़ू करने के पश्चात मोज़ा पहने, तो उनपर मसह करे तथा उन्हें पहनकर ही नमाज़ पढ़े और अगर चाहे तो जनबात के बिना उनको न उतारे।”
सह़ीह़ - इसे दारक़ुतनी ने रिवायत किया है ।

व्याख्या

जब कोई व्यक्ति वज़ू करने के बाद मोज़ा पहने, फिर इसके बाद उसका वज़ू टूट जाए और वह वज़ू करना चाहे, तो उनपर मसह करने के बाद उन्हें पहन कर नमाज़ पढ़ सकता है। उनको उतारना नहीं है, क्योंकि इसमें कठिनाई एवं परेशानी है। इसी कठिनाई एवं परेशानी को दूर करने तथा आसानी पैदा करने के लिए उसे मोज़ों पर मसह करने की अनुमति दी गई है। लेकिन यदि जुंबी हो जाए, तो मोज़े उतारकर स्नान करना पड़ेगा, चाहे उसकी अवधि बाकी ही क्यों न हो। इससे मालूम हुआ कि मोज़े पर मसह की अनुमति केवल वज़ू के साथ खास है।

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