عَنْ عَلِيٍّ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ: لَوْ كَانَ الدِّينُ بِالرَّأْيِ لَكَانَ أَسْفَلُ الْخُفِّ أَوْلَى بِالْمَسْحِ مِنْ أَعْلَاهُ:

وَقَدْ رَأَيْتُ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَمْسَحُ عَلَى ظَاهِرِ خُفَّيْهِ.
[حسن] - [رواه أبو داود]
المزيــد ...

अब्द-ए-ख़ैर, अली -रज़ियल्लाहु अन्हु- से वर्णन करते हैं कि उन्होंने कहा : यदि धर्म का आधार राय होता, तो मोज़े के ऊपरी भाग के बजाय निचले भगा का मसह करना अधिक उचित होता। हालाँकि मैंने अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को मोज़े के ऊपरी भाग का मसह करते हुए देखा है।”

الملاحظة
والنسائي في السنن الكبرى(119)، وأحمد (737) بنحوه.
النص المقترح لا يوجد...

सह़ीह़ - इसे अबू दाऊद ने रिवायत किया है।

व्याख्या

अली -रज़ियल्लाहु अनहु- बता रहे हैं कि यदि धर्म का आधार अल्लाह की वाणी एवं उसके रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- की सुन्नत के बजाय अक़्ल होता, तो मोज़े के ऊपरी भाग के बजाय निचले भाग का मसह करना अधिक उचित होता। क्योंकि उसके निचले भाग का संपर्क धरती से रहता है और उसमें गंदगियाँ एवं धूल-मिट्टी आदि लगती हैं। अतः विवेक यही कहता है कि मसह उसी का होना चाहिए। लेकिन शरीयत का आदेश इससे भिन्न है। अतः अमल उसी पर करना है और सुन्नत के विपरीत राय को छोड़ देना है। अली -रज़ियल्लाहु अनहु- ने अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- को मोज़े के ऊपरी भाग का मसह करते देखा है और अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- का अमल एक अन्य दृष्टिकोण से अक़्ल के अनुरूप भी है। क्योंकि पानी से निचले भाग का मसह उससे नजासत के चिपकने का सबब बनेगा। अतः ऊपरी भाग के मसह का आदेश दिया गया, ताकि उससे लगी हुई धूल साफ़ हो जाए। क्योंकि नज़र तो ऊपरी भाग ही आता है। अतः मसह भी उसी का होना चाहिए। याद रहे कि शरई आदेश एवं निर्देश, सारे के सारे, स्वस्थ विवेक के अनुरूप हैं। लेकिन कभी-कभी यह बात कुछ लोगों की पहुँच से बाहर रह जाती है।

अनुवाद: अंग्रेज़ी फ्रेंच स्पेनिश तुर्की उर्दू इंडोनेशियाई बोस्नियाई रूसी बंगला चीनी फ़ारसी तगालोग वियतनामी सिंहली कुर्दिश होसा पुर्तगाली
अनुवादों को प्रदर्शित करें

शब्दार्थ

अधिक