عَنْ أَبي هُرَيْرَةَ رضي الله عنه قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ:

«مَا مِنْ صَاحِبِ ذَهَبٍ وَلَا فِضَّةٍ، لَا يُؤَدِّي مِنْهَا حَقَّهَا، إِلَّا إِذَا كَانَ يَوْمُ الْقِيَامَةِ، صُفِّحَتْ لَهُ صَفَائِحُ مِنْ نَارٍ، فَأُحْمِيَ عَلَيْهَا فِي نَارِ جَهَنَّمَ، فَيُكْوَى بِهَا جَنْبُهُ وَجَبِينُهُ وَظَهْرُهُ، كُلَّمَا بَرَدَتْ أُعِيدَتْ لَهُ، فِي يَوْمٍ كَانَ مِقْدَارُهُ خَمْسِينَ أَلْفَ سَنَةٍ، حَتَّى يُقْضَى بَيْنَ الْعِبَادِ، فَيَرَى سَبِيلَهُ، إِمَّا إِلَى الْجَنَّةِ، وَإِمَّا إِلَى النَّارِ» قِيلَ: يَا رَسُولَ اللهِ، فَالْإِبِلُ؟ قَالَ: «وَلَا صَاحِبُ إِبِلٍ لَا يُؤَدِّي مِنْهَا حَقَّهَا، وَمِنْ حَقِّهَا حَلَبُهَا يَوْمَ وِرْدِهَا، إِلَّا إِذَا كَانَ يَوْمُ الْقِيَامَةِ، بُطِحَ لَهَا بِقَاعٍ قَرْقَرٍ، أَوْفَرَ مَا كَانَتْ، لَا يَفْقِدُ مِنْهَا فَصِيلًا وَاحِدًا، تَطَؤُهُ بِأَخْفَافِهَا وَتَعَضُّهُ بِأَفْوَاهِهَا، كُلَّمَا مَرَّ عَلَيْهِ أُولَاهَا رُدَّ عَلَيْهِ أُخْرَاهَا، فِي يَوْمٍ كَانَ مِقْدَارُهُ خَمْسِينَ أَلْفَ سَنَةٍ، حَتَّى يُقْضَى بَيْنَ الْعِبَادِ، فَيَرَى سَبِيلَهُ إِمَّا إِلَى الْجَنَّةِ، وَإِمَّا إِلَى النَّارِ» قِيلَ: يَا رَسُولَ اللهِ، فَالْبَقَرُ وَالْغَنَمُ؟ قَالَ: «وَلَا صَاحِبُ بَقَرٍ، وَلَا غَنَمٍ، لَا يُؤَدِّي مِنْهَا حَقَّهَا، إِلَّا إِذَا كَانَ يَوْمُ الْقِيَامَةِ بُطِحَ لَهَا بِقَاعٍ قَرْقَرٍ، لَا يَفْقِدُ مِنْهَا شَيْئًا، لَيْسَ فِيهَا عَقْصَاءُ، وَلَا جَلْحَاءُ، وَلَا عَضْبَاءُ تَنْطَحُهُ بِقُرُونِهَا وَتَطَؤُهُ بِأَظْلَافِهَا، كُلَّمَا مَرَّ عَلَيْهِ أُولَاهَا رُدَّ عَلَيْهِ أُخْرَاهَا، فِي يَوْمٍ كَانَ مِقْدَارُهُ خَمْسِينَ أَلْفَ سَنَةٍ، حَتَّى يُقْضَى بَيْنَ الْعِبَادِ، فَيَرَى سَبِيلَهُ إِمَّا إِلَى الْجَنَّةِ، وَإِمَّا إِلَى النَّارِ» قِيلَ: يَا رَسُولَ اللهِ، فَالْخَيْلُ؟ قَالَ: " الْخَيْلُ ثَلَاثَةٌ: هِيَ لِرَجُلٍ وِزْرٌ، وَهِيَ لِرَجُلٍ سِتْرٌ، وَهِيَ لِرَجُلٍ أَجْرٌ، فَأَمَّا الَّتِي هِيَ لَهُ وِزْرٌ، فَرَجُلٌ رَبَطَهَا رِيَاءً وَفَخْرًا وَنِوَاءً عَلَى أَهْلِ الْإِسْلَامِ، فَهِيَ لَهُ وِزْرٌ، وَأَمَّا الَّتِي هِيَ لَهُ سِتْرٌ، فَرَجُلٌ رَبَطَهَا فِي سَبِيلِ اللهِ، ثُمَّ لَمْ يَنْسَ حَقَّ اللهِ فِي ظُهُورِهَا وَلَا رِقَابِهَا، فَهِيَ لَهُ سِتْرٌ وَأَمَّا الَّتِي هِيَ لَهُ أَجْرٌ، فَرَجُلٌ رَبَطَهَا فِي سَبِيلِ اللهِ لِأَهْلِ الْإِسْلَامِ، فِي مَرْجٍ وَرَوْضَةٍ، فَمَا أَكَلَتْ مِنْ ذَلِكَ الْمَرْجِ، أَوِ الرَّوْضَةِ مِنْ شَيْءٍ، إِلَّا كُتِبَ لَهُ، عَدَدَ مَا أَكَلَتْ حَسَنَاتٌ، وَكُتِبَ لَهُ، عَدَدَ أَرْوَاثِهَا وَأَبْوَالِهَا، حَسَنَاتٌ، وَلَا تَقْطَعُ طِوَلَهَا فَاسْتَنَّتْ شَرَفًا، أَوْ شَرَفَيْنِ، إِلَّا كَتَبَ اللهُ لَهُ عَدَدَ آثَارِهَا وَأَرْوَاثِهَا حَسَنَاتٍ، وَلَا مَرَّ بِهَا صَاحِبُهَا عَلَى نَهْرٍ، فَشَرِبَتْ مِنْهُ وَلَا يُرِيدُ أَنْ يَسْقِيَهَا، إِلَّا كَتَبَ اللهُ لَهُ، عَدَدَ مَا شَرِبَتْ، حَسَنَاتٍ " قِيلَ: يَا رَسُولَ اللهِ، فَالْحُمُرُ؟ قَالَ: «مَا أُنْزِلَ عَلَيَّ فِي الْحُمُرِ شَيْءٌ، إِلَّا هَذِهِ الْآيَةَ الْفَاذَّةُ الْجَامِعَةُ»: {فَمَنْ يَعْمَلْ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ خَيْرًا يَرَهُ، وَمَنْ يَعْمَلْ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ شَرًّا يَرَهُ} [الزلزلة: 8].
[صحيح] - [متفق عليه]
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अबू हुरैरा -अल्लाह उनसे प्रसन्न हो- कहते हैं कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम- ने फ़रमाया : "c2">“जो भी सोना तथा चाँदी का मालिक उसका हक़ अदा नहीं करता, क़यामत के दिन उसके लिए आग की तख़्तियाँ बनाई जाएँगी, फिर उन्हें जहन्नम की आग में तपाया जाएगा और उनसे उसके पहलू, पेशानी तथा पीठ को दागा जाएगा। जब-जब वह तख़्तियाँ ठंडी पड़ जाएँगी, तो उन्हें दोबारा आग में तपाया जाएगा। यह सब कुछ एक ऐसे दिन में होगा, जिसकी अवधि पचास हज़ार साल के बराबर होगी। यहाँ तक कि बंदों के बीच निर्णय कर दिया जाएगा और उसके बाद वह या तो जन्नत की राह ले लेगा या फिर जहन्नम की।" कहा गयाः ऐ अल्लाह के रसूल, ऊँट के बारे में आप क्या फ़रमाते हैं? उत्तर दिया : “ऊँट का मालिक भी यदि उसका हक़ नहीं देगा; उसका एक हक यह भी है कि जिस दिन उसके पानी पीने की बारी हो उस दिन उसे दूहकर ज़रूरतमंदों को पिलाया जाए; तो क़यामत के दिन उसे एक बहुत बड़े सपाट मैदान में मुँह के बल लिटा दिया जाएगा, तथा उसके सारे ऊँट पहले से भी अधिक मोटे-ताज़े होकर वहाँ उपस्थित होंगे। एक ऊँट का बच्चा तक अनुपस्थित नहीं रहेगा। फिर यह सारे ऊँट अपने खुर से उसे रौंदेंगे और अपने मुँह से उसे काटेंगे। यह सिलसिला एक ऐसे दिन में, जिसकी अवधि पचास हज़ार साल के बराबर होगी, इस तरह जारी रहेगा कि जब आगे के ऊँट गुज़र जाएँगे, तो पीछे के ऊँट वापस हो जाएँगे। यहाँ तक कि बंदों के बीच फ़ैसला कर दिया जाएगा और फिर वह अपना रास्ता ले लेगा, या तो जन्नत की ओर या फिर जहन्नम की ओर।" कहा गयाः ऐ अल्लाह के रसूल, गाय और बकरी के बारे में आप क्या फ़रमाते हैं? तो फ़रमाया : “गाय अथवा बकरी का मालिक भी यदि उसका हक नहीं देता, तो क़यामत के दिन उसे एक बहुत बड़े सपाट मैदान में मुँह के बल लिटा दिया जाएगा। एक भी गाय अथवा बकरी गायब नहीं होगी और न ऐसा होगा कि उनमें से किसी की सींग मुड़ी हुई हो, किसी की सींग टूटी हुई हो या कोई बिना सींग की हो। वह उसे, एक ऐसे दिन में, जिसकी अवधि पचास हज़ार साल के बराबर होगी, इस तरह अपनी सींग से मारती रहेगी और खुर से रौंदती रहेंगी कि जब भी आगे की गाएँ और बकरियाँ निकल जाएँगी, पीछे की गाएँ और बकरियाँ दोबारा वापस हो जाएँगी। यहाँ तक कि बंदों के बीच फ़ैसला कर दिया जाएगा और फिर वह अपनी राह ले लेगा, चाहे जन्नत की ओर हो या फिर जहन्नम की ओर।" कहा गया : घोड़े के बारे में क्या फ़रमाते हैं? तो फ़रमाया : “घोड़े तीन प्रकार के हैं; यह एक व्यक्ति के लिए पाप का कारण हैं, एक के लिए पर्दा हैं और एक के लिए नेकी का कारण हैं। उस आदमी के घोड़ा उसके लिए गुनाह का कारण हैं, जिसने उन्हें दिखाने, अभिमान करने और मुसलमानों से शत्रुता के लिए बाँध रखा हो। ऐसे घोड़े मालिक के लिए गुनाह का सबब हैं। उस आदमी के घोड़े उसके लिए पर्दा हैं, जिसने उन्हें अल्लाह के मार्ग में जिहाद के लिए बाँध रखा हो और वह उनकी पीठ तथा गर्दन के बारे में अल्लाह के हक़ को न भूलता हो। ऐसे घोड़े उसके मालिक के लिए पर्दे हैं। जबकि उस व्यक्ति के घोड़े उसके लिए नेकी का कारण हैं, जिसने अपने घोड़ों को अल्लाह के मार्ग में जिहाद के उद्देश्य से किसी चरागाह अथवा बाग में बाँघ रखा हो। ऐसा घोड़े उस चरागाह अथवा बाग से जो कुछ भी खाएँगे, उसके बराबर उसके लिए नेकियाँ लिखी जाएँगी। इसी तरह उनकी लीद और पेशाब के बराबर भी उसके लिए नेकियाँ लिखी जाएँगी। इसी तरह अगर वे रस्सियाँ काट देते हैं और एक या दो टीलों पर चढ़ जाते हैं, तो उनके पदचिह्नों तथा लीदों के बराबर उसके लिए नेकियाँ लिखी जाएँगी। यदि उनका मालिक उन्हें लेकर किसी नहर के पास से गुज़रे और वह पानी पिलाना न चाहता हो, इसके बावजूद वह पानी पी लें, तो उनके पानी पीने के अनुपात में उसके लिए नेकियाँ लिखी जाएँगी।" कहा गयाः ऐ अल्लाह के रसूल, गधों के बारे में आप क्या फ़रमाते हैं? तो फ़रमाया : “गधों के बारे में मुझपर इस अनूठी तथा सारगर्भित आयत के सिवा कुछ नहीं उतरा है : {فمن يعمل مثقال ذرة خيرا يره ومن يعمل مثقال ذرة شرا يره} [الزلزلة: 7 - 8] यानी जिसने एक कण के बराबर भी पुण्य किया होगा, उसे देख लेगा और जिसने एक कण के बराबर भी बुरा किया होगा, उसे देख लेगा।
सह़ीह़ - इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

जो भी सोने या चाँदी का मालिक है और वह उसकी ज़कात अदा नही करता, तो क़ियामत के दिन उस सोने और चाँदी की तख़्तियाँ (प्लेटें) बनाई जाएँगी और उनको जहन्नम की आग में गरम किया जाएगा। फिर उनसे उसके पहलू, माथे और पीठ को दागा जाएगा। जब भी वे (तख़्तियाँ) ठंडी हो जाएँगी, उन्हें दोबारा गरम कर दिया जाएगा। यह ऐसे दिन में होगा, जो पचास हज़ार वर्ष के बराबर होगा। यह सिलसिला उस समय तक जारी रहेगा, जब तक कि बंदों के बीच निर्णय न कर दिया जाए। फिर उसे जन्नत या जहन्नम की ओर उसका रास्ता दिखा दिया जाएगा। अतः सोने और चाँदी में हर हाल में ज़कात अनिवार्य है। यदि कोई उसे अदा नहीं करता, तो उसकी सज़ा वही है, जो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस हदीस में बयान की है। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "जो ऊँट का मालिक अपने ऊँटों का हक़ नहीं देता" यानी यदि ऊँट का मालिक उससे उपेक्षा करता है, जो अल्लाह ने उन (ऊँटों) के बारे में उसपर अनिवार्य किया है, जैसे उनकी ज़कात अदा करना तथा उन्हें पानी पिलाने के लिए लाने के दिन उनका दूध दूहकर वहाँ से गुज़रने वालों और पनघट पर उपस्थित लोगों को पिलाना। "जब क़ियामत का दिन होगा, तो उसे एक सपाट मैदान में मुँह के बल लिटा दिया जाएगा और उसके सारे ऊँट पहले से भी अधिक मोटे-ताज़े होकर आएँगे..." तथा सहीह मुस्लिम की एक रिवायत में है : "(दुनिया से) अधिक भारी-भरकम होकर आएँगे।" ऊँटों की बहुतायत, शक्ति और भारी-भरकम बनावट का उद्देश्य उसकी सज़ा में वृद्धि है, ताकि वे उसको रौंदने में अधिक भारी हों। "जब भी उनमें से पहला ऊँट (रौंदता हुआ) गुज़र जाएगा, तो पिछला आ जाएगा।" सहीह मुस्लिम की एक दूसरी रिवायत में है : "जब भी उनमें से पिछला ऊँट गुज़र जाएगा, तो उनमें से अगले को वापस लौटा दिया जाएगा।" अर्थ यह है कि उसे पचास हज़ार वर्ष तक प्रताड़ित किया जाता रहेगा, यहाँ तक कि बंदों के बीच निर्णय कर दिया जाएगा और फिर उसे जन्नत या जहन्नम की ओर उसका रास्ता दिखा दिया जाएगा। कहा गया : ऐ अल्लाह के रसूल! गाय और बकरी का क्या हाल होगाॽ आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : “कोई गाय या बकरी का मालिक ऐसा नहीं जो उसकी ज़कात न देता हो, परंतु जब क़ियामत का दिन होगा, तो उसे एक सपाट मैदान में औंधा लिटा दिया जाएगा..." गाय तथा बकरी की ज़कात न देने वाले के बारे में वही कुछ कहा जाएगा, जो ऊँट की ज़कात न देने वाले के बारे में कहा गया है। तथा सींग वाले जानवर अपने सींगों के साथ आएँगे, ताकि उनके सींग से मारने से अधिक चोट पहुँचे।
"c2">“कहा गया : ऐ अल्लाह के रसूल! और घोड़ेॽ आपने फरमाया : “घोड़े तीन प्रकार के हैं; यह एक व्यक्ति के लिए पाप का कारण है, एक के लिए पर्दा है और एक के लिए नेकी का कारण है।”
यानी घोड़े तीन प्रकार के होते हैं। पहले प्रकार के घोड़े का उल्लेख आपने इन शब्दों में किया है : “वह घोड़ा जो उसके मालिक के लिए बोझ (गुनाह का कारण) है, जिसे आदमी ने लोगों को दिखाने, अभिमान करने और मुसलमानों से शत्रुता के लिए बाँध रखा है। सो यह घोड़ा अपने मालिक के लिए पाप का कारण हैं।" अतः यह व्यक्ति जिसने अपने घोड़े को दिखावा, अभिमान और मुसलमानों से शत्रुता के लिए तैयार किया है, उसका घोड़ा क़ियामत के दिन उसके लिए गुनाह का कारण होगा। दूसरे प्रकार के घोड़े का उल्लेख आप - सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम - ने इन शब्दों में किया है : "जो अपने मालिक के लिए पर्दा हैं, वह घोड़ा है जिसे आदमी ने अल्लाह के मार्ग में जिहाद के लिए बाँध रखा है और वह उसकी पीठ (सवारी) तथा गर्दन के बारे में अल्लाह के हक़ को नहीं भूलता। तो वह घोड़ा उसके मालिक के लिए पर्दा है।" इसका तात्पर्य यह है कि जिस घोड़े को उसके मालिक ने अपनी ज़रूरत के लिए तैयार किया है, वह उसके उत्पाद, उसके दूध, उसकी सवारी और उसे किराए पर देने से लाभान्वित होता है; ताकि अपने आपको लोगों के सामने हाथ फैलाने से रोक रखे। उसका यह काम अल्लाह की आज्ञाकारिता में और उसकी प्रसन्नता तलाश करने के लिए होने के कारण उसके लिए पर्दा है; क्योंकि इनसान के पास पर्याप्तता होने के बावजूद लोगों के आगे हाथ फैलाना निषिद्ध है। "फिर वह उसकी पीठ तथा गर्दन के बारे में अल्लाह के हक़ को नहीं भूलता।" इस प्ररकार कि वह उसपर अल्लाह के मार्ग में या आवश्यकता के समय सवार होता है, उसपर इतना बोझ नहीं लादता जो वह सहन न कर सके, उसकी अच्छी तरह देखभाल करता हो और उससे नुकसान को दूर करता है। तो यह उसके मालिक के लिए ग़रीबी से पर्दा है। तीसरे प्रकार के घोड़े का उल्लेख करते हुए आप - सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम - ने फ़रमाया : "तथा जो उस व्यक्ति के लिए नेकी का कारण हैं, वह घोड़ा है जिस उसने अल्लाह के मार्ग में इस्लाम के लोगों की मदद के लिए किसी चरागाह अथवा बाग में बाँध रखा है। वह घोड़ा उस चरागाह अथवा बाग से जो कुछ भी खाता है, उसकी संख्या के अनुसार उसके लिए नेकियाँ लिखी जाएँगी। तथा उसकी लीद और पेशाब की गिनती के बराबर उसके लिए नेकियाँ लिखी जाएँगी। इसी तरह जब वह अपनी रस्सी तोड़कर एक या दो टीलों पर चढ़ जाता है, तो उसके पदचिह्नों तथा लीदों की संख्या के अनुसार उसके लिए नेकियाँ लिखी जाएँगी। तथा जब उसका मालिक उसे लेकर किसी नहर पर से गुज़रता है और वह उससे पानी पी लेता है, हालाँकि वह उसे पाना नहीं पिलाना चाहता, तो भी उसके पानी पीने की मात्रा में उसके लिए नेकियाँ लिखी जाएँगी।" इसका अभिप्राय यह है कि उसने उसे अल्लाह के मार्ग में जिहाद के लिए तैयार किया है, चाहे वह खुद उसपर सवार होकर जिहाद करता है या उसे अल्लाह के मार्ग में वक़्फ कर दिया है ताकि उसके साथ काफ़िरों से जिहाद किया जाए। क्योंकि अल्लाह के रसूल - सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम - ने फरमाया है : "जिसने किसी योद्धा को युद्ध की तैयारी कराई, उसने स्वयं युद्ध किया।" अतः यह व्यक्ति, जिसने अपने घोड़े को अल्लाह के मार्ग में अल्लाह के धर्म का वर्चस्व स्थापित करने के लिए तैयार किया है, तो वह घोड़ा पृथ्वी के पौधों में से जो कुछ भी खाता है उसके बदले उसके लिए नेकियाँ हैं, यहाँ तक कि उसका मूत्र और लीद भी उसके लिए नेकियों के रूप में लिखा जाएगा। अल्लाह तआला का फरमान है : (ولا يظلم ربك أحدًا) "आपका पालनहार किसी पर अत्याचार नहीं करता।" "अगर वह अपनी रस्सी तोड़कर एक या दो टीलों पर चढ़ जाता है, तो उसके पदचिह्नों तथा लीदों की संख्या के अनुसार उसके लिए नेकियाँ लिखी जाएँगी।" यानी अगर वह रस्सी तोड़कर कहीं और चरने के लिए भाग जाए, तो उसके मालिक के लिए उसके द्वारा तय किए पदचिह्नों की संख्या के अनुसार, साथ ही उसके मूत्र और लीद का प्रतिफल मिलेगा। "तथा जब उसका मालिक उसे लेकर किसी नहर पर से गुज़रता है और वह उससे पानी पी लेता है, अगरचे वह उसे पाना नहीं पिलाना चाहता, तो भी उसके पानी पीने की मात्रा में उसके लिए नेकियाँ लिखी जाएँगी।" अर्थात् : घोड़े के मालिक को उसके घोड़े के नदी अथवा नाले से पानी पी लेने पर नेकी मिलेगी, अगरचे उसने उसे पानी पिलाने की नीयत न की हो। उसने जो कुछ भी पिया है उसकी मात्रा में उसके लिए नेकियाँ लिखी जाएँगी, भले ही वह उसे पानी नहीं पिलाना चाहता था; क्योंकि उसकी पिछली नीयत को काफ़ी समझा गया है, जो कि उसे अल्लाह के मार्ग में जिहाद के लिए तैयार करने की नीयत थी। अतः यह आवश्यक नहीं है कि कोई नेकी का काम करते समय शुरू से अंत तक पूरे अमल में नीयत साथ हो, जब तक कि उस काम को छोड़ देने से नीयत अमान्य न हो जाए। "कहा गया : ऐ अल्लाह के रसूल! गधों के बारे में क्या अनिवार्य है?" अर्थात् : उनका हुक्म क्या है, क्या वे ज़कात अनिवार्य होने में चौपायों के हुक्म में हैं, या घोड़े की तरह? ‘‘आप - सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम - ने फरमाया : “गधों के बारे में मुझपर कुछ भी अवतरित नहीं हुआ है।’’ यानी इसके बारे में मुझपर कोई विशिष्ट चीज़ (आयत आदि) नहीं उतरी है। लेकिन यह व्यापक अनूठी उतरी है।’’ यानी जो हर भलाई और नेकी को व्याप्त है : {فمن يعمل مثقال ذرة خيرا يره ومن يعمل مثقال ذرة شرا يره} ‘‘जिसने एक कण के बराबर भी भलाई की होगी, उसे देख लेगा और जिसने एक कण के बराबर भी बुराई की होगी, उसे देख लेगा।" (सूरतुज़-ज़लज़ला : 7-8)'' इस हदीस को इमाम बुख़ारी तथा इमाम मुस्लिम ने रिवायत किया है। इस हदीस को इमाम बुख़ारी तथा इमाम मुस्लिम ने रिवायत किया है। यह आयत हर भलाई और बुराई के लिए सर्वसामान्य है; क्योंकि जब इनसान कण के बराबर चीज़ देख लेगा, जो कि सबसे तुच्छ चीज़ है और उसका बदला दिया जाएगा, तो जो चीज़ उससे बड़ी है उसका बदला दिया जाना कहीं अधिक योग्य है। जैसा कि अल्लाह तआला का फरमान है : (يوم تجد كل نفس ما عملت من خير محضرًا وما عملت من سوء تَوَدُّ لو أن بينها وبينه أمدا بعيدا) "जिस दिन प्रत्येक व्यक्ति अपनी की हुई नेकी को हाज़िर किया हुआ पाएगा, तथा जिसने बुराई की होगी, वह कामना करेगा कि उसके तथा उसकी बुराई के बीच बहुत दूर का फ़ासला होता।" (सूरत आल-इमरान : 30)

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