عَنْ أَنَسِ بْنِ مَالِكٍ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ:

«اسْمَعُوا وَأَطِيعُوا، وَإِنِ اسْتُعْمِلَ عَلَيْكُمْ عَبْدٌ حَبَشِيٌّ، كَأَنَّ رَأْسَهُ زَبِيبَةٌ».
[صحيح] - [رواه البخاري]
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अनस बिन मालिक -रज़ियल्लाहु अन्हु- से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फरमाया : "बात सुनो और अनुसरण करो, यद्यपि तुम्हारा शासक किसी हबशी दास ही को क्यों न बना दिया जाए, जिसका सर किशमिश की तरह हो।"
सह़ीह़ - इसे बुख़ारी ने रिवायत किया है।

व्याख्या

अनिवार्य रूप से अपने शासकों की बात सुनो और उनका अनुसरण करो। यहाँ तक कि यदि किसी हब्शी ग़ुलाम को भी तुम्हारा शासक बना दिया जाए, जो या तो मूल रूप से हब्शी हो या आंशिक रूप से हब्शी हो या शारीरिक बनावट के रूप से हब्शी हो और उसका सर किशमिश की तरह दिखता हो, तब भी उसकी बात सुनने और उसका अनुसरण करने से गुरेज़ न करो। आपने उसका सर किशमिश की तरह दिखता हो, कहकर उसके मूल रूप से अथवा आंशिक रूप से हब्शी होने की बात में ज़ोर पैदा किया है। आपके शब्द : "وإن استعمل" में सुलतान का अमीर भी शामिल है और स्वयं सुलतान भी। उदाहरणस्वरूप यदि कोई सुलतान लोगों पर ताक़त के बल पर अधिकार प्राप्त कर ले और सत्तासीन हो जाए तथा वह अरब न हो, बल्कि हब्शी दास हो, तब भी हमें उसकी बात सुननी पड़ेगी और उसका अनुसरण करना होगा। यह हदीस गुनाह के कामों को छोड़ तमाम मामलों में शासकों के आज्ञापालन के अनिवार्य होने को प्रमाणित करती है। क्योंकि उनके आज्ञापालन में भलाई, शांति और स्थिरता है। इससे बिखराव से मुक्त वातावरण बनता है और मनमानियों के रास्ते बंद होते हैं। इसके विपरीत जहाँ शासकों का आज्ञापालन ज़रूरी हो और उनका आज्ञापालन न किया जाए, तो इससे बिखराव पैदा होता है, हर व्यक्ति मनमानी पर उतर आता है, अशांति फैल जाती है, सिस्टम चौपट हो जाता है और बहुत-से फ़ितने सर उभारने लगते हैं।

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