عَنْ أَبِي سَعِيدٍ الْخُدْرِيِّ وَأَبِي هُرَيْرَةَ رضي الله عنهما قَالَا: قَالَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ:

«الْعِزُّ إِزَارُهُ، وَالْكِبْرِيَاءُ رِدَاؤُهُ، فَمَنْ يُنَازِعُنِي عَذَّبْتُهُ».
[صحيح] - [رواه مسلم]
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अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अनहु) कहते हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः प्रतिष्ठा मेरा तहबंद और अभिमान मेरी चादर है। अतः, जो उन दोनों में से कोई भी चीज़ मुझसे खींचेगा, मैं उसे यातना में डालूँगा।
सह़ीह़ - इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

प्रतिष्ठा एवं अभिमान दो ऐसे गुण हैं, जो अल्लाह के साथ खास हैं और इन गुणों में उसका कोई साझी एवं शरीक नहीं है। बिल्कुल वैसे ही, जैसे इन्सान अपनी चादर एवं तहबंद जैसे वस्त्रों में किसी को साझी बनाना गवारा नहीं करता। अतः ये दोनों गुण उसी के साथ लाज़िम हैं और ये अल्लाह की उन विशेषताओं में से हैं, जिनमें उसका कोई साझी नहीं है। ऐसे में, जिसने प्रतिष्ठा एवं अभिमान का दावा किया, उसने अल्लाह की बादशाहत में उससे खींचतान की। और जो अल्लाह से खींचतान करेगा, उसे वह यातना देगा।

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