عَنْ أُبَيِّ بْنِ كَعْبٍ رضي الله عنه قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ:

«لاَ تَسُبُّوا الرِّيحَ، فَإِذَا رَأَيْتُمْ مَا تَكْرَهُونَ فَقُولُوا: اللَّهُمَّ إِنَّا نَسْأَلُكَ مِنْ خَيْرِ هَذِهِ الرِّيحِ وَخَيْرِ مَا فِيهَا وَخَيْرِ مَا أُمِرَتْ بِهِ، وَنَعُوذُ بِكَ مِنْ شَرِّ هَذِهِ الرِّيحِ وَشَرِّ مَا فِيهَا وَشَرِّ مَا أُمِرَتْ بِهِ».
[صحيح] - [رواه الترمذي]
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उबै बिन काब (रज़ियल्लाहु अंहु) का वर्णन है कि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः वायु को गाली मत दो। यदि कोई ऐसी बात देखो, जो पसंद न हो तो कहोः ऐ अल्लाह! हम तुझसे इस वायु तथा जो इसमें है और जिसका इसे आदेश दिया गया है, उन सब की भलाई माँगते हैं। तथा हम इस वायु एवं जो इसमें है और जिसका इसे आदेश दिया गया है, उन सब की बुराई से तेरी शरण माँगते हैं।
सह़ीह़ - इसे तिर्मिज़ी ने रिवायत किया है।

व्याख्या

नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने वायु को गाली देने से मना किया है। क्योंकि वह एक सृष्टि है और अल्लाह के आदेश से चलती है। अतः उसे गाली देना दरअसल अल्लाह को गाली देना और उसके निर्णय से बेज़ार होना है। फिर आपने बताया कि इनसान को वायु के सृष्टिकर्ता की ओर जाते हुए उसी से उसकी भलाई माँगनी चाहिए तथा उसकी बुराई से उसी की शरण माँगनी चाहिए। यही अल्लाह की बंदगी का तक़ाज़ा है और यही एकेश्वरवादियों की शान है।

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