عن أبي هريرة رضي الله عنه مرفوعاً: «احرِصْ على ما يَنْفَعُكَ، واستَعِنْ بالله ولا تَعْجَزَنَّ، وإن أصابك شيء فلا تقُلْ: لو أنني فعلت لكان كذا وكذا، ولكن قل: قَدَرُ الله، وما شاء فعل، فإن «لو» تفتح عمل الشيطان».
[صحيح] - [رواه مسلم]
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अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अंहु) का वर्णन है कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः अपने लाभ की चीज़ के इच्छुक बनो तथा अल्लाह तआला से सहायता माँगो और कदाचित, विवश होकर न बैठो। यदि तुम्हें कोई विपत्ति पहुँचे तो यह न कहो कि यदि मैंने ऐसा किया होता तो ऐसा और ऐसा होता। बल्कि यह कहो कि "قدر الله وما شاءفعل" (अर्थात् अल्लाह तआला ने ऐसा ही भाग्य में लिख रखा था और वह जो चाहता है, करता है।) क्योंकि ‘अगर’ शब्द शैतान के कार्य का द्वार खोलता है।
सह़ीह़ - इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

चूँकि इस्लाम इस धरती को आबाद करने और समाज को सुंदर बनाने के लिए आया है, इसलिए अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने प्रत्येक मुसलमान को प्रसाय एवं प्राप्ति की राह पर उन्मुख रहने तथा इसके लिए अल्लाह की मदद माँगने, विवशता एवं उसका कारण बनने वाली वस्तुओं से बचने एवं लक्ष की प्राप्ति में असफल होने की अवस्था में खुद को कोसने से बचने का आदेश दिया है, क्योंकि खुद को कोसने से इनसान विवशता के रोग से ग्रसित होने के साथ-साथ अल्लाह के निर्णय से भी नाखुश रहने लगता है। अतः, इनसान को चाहिए कि अपने मामले को अल्लाह के हवाले कर दे और अल्लाह के निर्णय तथा तक़दीर पर राज़ी एवं संतुष्ट रहे, ताकि शैतान को इस बात का अवसर न मिले कि अल्लाह तथा उसके निर्णय एवं तक़दीर पर उसके विश्वास को कमज़ोर कर सके।

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