عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رضي الله عنه:

أَنَّ النَّبِيَّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ نَهَى أَنْ يَبِيعَ حَاضِرٌ لِبَادٍ، أَوْ يَتَنَاجَشُوا، أَوْ يَخْطُبَ الرَّجُلُ عَلَى خِطْبَةِ أَخِيهِ، أَوْ يَبِيعَ عَلَى بَيْعِ أَخِيهِ، وَلَا تَسْأَلِ الْمَرْأَةُ طَلَاقَ أُخْتِهَا لِتَكْتَفِئَ مَا فِي إِنَائِهَا، أَوْ مَا فِي صَحْفَتِهَا.
[صحيح] - [متفق عليه]
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अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अंहु) का वर्णन है कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने इस बात से मना किया है कि कोई नगर का रहने वाला किसी देहात में रहने वाले का सामान बेचे (तथा फ़रमाया कि) तुम आपस में दाम न बढ़ाओ तथा कोई अपने भाई के सौदे पर सौदा न करे और न उसके विवाह-संदेश पर अपना विवाह-संदेश भेजे एवं कोई स्त्री अपनी बहन की तलाक़ न माँगे कि उसकी थाली में जो कुछ है, उसे उंडेल ले।
सह़ीह़ - इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

इसलाम हर उस चीज़ को ख़त्म करना चाहता है, जो मुस्लिम समाज में शत्रुता और द्वेष की भावना बढ़ाती है। इसलाम की यह इच्छा इस हदीस से भी स्पष्ट होकर सामने आती है। इस हदीस में ख़रीदने के इरादे नहीं, बल्कि बेचने वाले को लाभ अथवा ख़रीदने वाले को हानि पहुँचाने के उद्देश्य से सामान का भाव बढ़ाने से मना किया गया है। इसका कारण यह है कि इसका आधार झूठ, ख़रीदने वालों के साथ धोखा तथा अनैतिक तरीक़े से सामान का दाम बढ़ाने पर है। इसी तरह इस बात से मना किया है कि नगर का रहने वाला देहात में रहने वाले का सामान बेचे; क्यों कि वह सामान का पूरा दाम ले लेगा और कोई कमी नहीं रहने देगा कि ख़रीदने वालों को कुछ फ़ायदा हो। जबकि नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया हैः "लोगों को अपने हाल पर छोड़ दो कि अल्लाह उनमें से किसी को किसी से रोज़ी दे।" सच्चाई यह है कि जब ख़ुद सामान का मालिक उसे बेचेगा, तो अपने हिसाब से दाम लेगा और ख़रीदने वालों को कुछ न कुछ राहत मिलेगी। यह भी हराम है कि आदमी अपने भाई के विवाह-संदेश पर विवाह-संदेश दे, जब तक यह न जान ले कि संदेश भेजने वाले के संदेश को नकार दिया गया है। क्योंकि इससे भी शत्रुता और द्वेश की भावना बढ़ती है और यह एक तरह से किसी को उसकी रोज़ी से वंचित करने का प्रयास भी है। इसी तरह एक स्त्री के लिए जायज़ नहीं है कि वह अपने पति से, अपनी सौतन को तलाक़ देने का मुतालबा करे, उसे उसके विरुद्ध भड़काए या दोनों के बीच कटुता पैदा करने का प्रयास करे कि दोनों एक-दूसरे से अलग हो जाएँ। यह एक हराम कार्य है। क्योंकि इसमें बहुत-सी बुराइयाँ हैं, जैसे दुश्मनी का बीज बोना, ईर्ष्या का वातावर्ण बनाना और अपनी बहन को उसकी रोज़ी से महरूम करना, जिसकी ओर इशारा 'उसके हिस्से की भलाई को उंडेल लेने' के वाक्य के माध्यम से किया गया है और जो निकाह के नतीजे में खिलाने-पिलाने, पहनाने और अन्य वैवाहिक अधिकारों के रूप में प्राप्त होती है।

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