عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ عَمْرِو بْنِ الْعَاصِ رضي الله عنهما أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ كَانَ يَدْعُو بِهَؤُلَاءِ الْكَلِمَاتِ:

«اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنْ غَلَبَةِ الدَّيْنِ، وَغَلَبَةِ الْعَدُوِّ، وَشَمَاتَةِ الْأَعْدَاءِ».
[صحيح] - [رواه النسائي وأحمد]
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अब्दुल्लाह बिन अम्र (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से रिवायत करते हैं कि आपने फ़रमायाः "c2">“ऐ अल्लाह, ऋण के बोझ तथा शत्रुओं के हावी होने और दुश्मनों के हँसने से, मैं तेरी पनाह चाहता हूँ।”
सह़ीह़ - इसे नसाई ने रिवायत किया है।

व्याख्या

इस हदीस में अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने इस बात से अल्लाह की शरण माँगी है कि क़र्ज़ का बोझ तथा उसकी विभिषिका इतना बढ़ जाए कि इन्सान उसे उतारने में विवश दिखाई देने लगे। इसी तरह शत्रु इतना हावी हो जाए कि उसका वर्चस्व स्थापित हो जाए और उसकी ही बात चलने लगे। इसी प्रकार इस बात से भी अल्लाह की शरण माँगी है कि शरीर, परिवार एवं धन संबंधी कोई ऐसी विपत्ति आ जाए कि दुश्मनों को हँसने का अवसर मिल जाए।

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