«مَا شَيْءٌ أَثْقَلُ فِي مِيزَانِ الْمُؤْمِنِ يَوْمَ القِيَامَةِ مِنْ خُلُقٍ حَسَنٍ، وَإِنَّ اللَّهَ لَيُبْغِضُ الفَاحِشَ البَذِيءَ».
[صحيح] - [رواه أبو داود والترمذي]
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पहली हदीसः अब्दुल्लाह बिन मसऊद (रज़ियल्लाहु अंहु) नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से रिवायत करते हैंः "तराज़ू में अच्छे आचरण से ज़्यादा कोई वस्तु भारी नहीं होगी और अल्लाह ऐसे व्यक्ति से नफ़रत करता है, जो बदज़ुबान और अनर्गल बकने वाला हो।"
दूसरी हदीसः अबू दरदा (रज़ियल्लाहु अंहु) नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से रिवायत करते हैंः "मोमिन ताना देने वाला, लानत करने वाला, बदज़ुबान और अनर्गल बकने वाला नहीं होता।"
दोनों रिवायतों को मिलाकर सह़ीह़ - इसे तिर्मिज़ी ने रिवायत किया है।
पहली हदीस : इस हदीस में अच्छे आचरण के महत्व को इंगित किया गया है। याद रहे कि अच्छा आचरण नाम है अन्य लोगों को कष्ट देने से बचने, उन्हें अपनी अच्छाइयों से लाभान्वित होने का अवसर देने और उनसे हँसकर मिलने का। साथ ही यह कि क़यामत के दिन तराज़ू में कोई भी कर्म उत्तम आचरण से अधिक भारी नहीं होगा। जबकि इसके विपरीत बदज़ुबान एवं अनर्गल बकने वाले इनसान से अल्लाह घृणा करता है। दूसरी हदीस : इस में बयान किया गया है कि एक संपूर्ण ईमान वाला व्यक्ति किसी पर बहुत ज़्यादा कटाक्ष नहीं करता, किसी के ऐब नहीं निकालता तथा लोगों के मान-सम्मान के साथ खिलवाड़ नहीं करता। इसी तरह, वह बहुत ज़्यादा गाली बकने वाला और लानत करने वाला भी नहीं होता। वह किसी के कुल, मान-मर्यादा, रंग-रूप, शारीरिक बनावट और आकांक्षाओं को निशाना नहीं बनाता। उसकी सबसे बड़ी शक्ति होती है उच्च आचरण से सुशोभित होना और बुरे आचरण से दूर रहना।