«لَا تَزُولُ قَدَمَا عَبْدٍ يَوْمَ القِيَامَةِ حَتَّى يُسْأَلَ عَنْ عُمُرِهِ فِيمَا أَفْنَاهُ، وَعَنْ عِلْمِهِ فِيمَ فَعَلَ، وَعَنْ مَالِهِ مِنْ أَيْنَ اكْتَسَبَهُ وَفِيمَ أَنْفَقَهُ، وَعَنْ جِسْمِهِ فِيمَ أَبْلَاهُ».
[صحيح] - [رواه الترمذي]
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अबू बरज़ा नज़ला बिन उबैद असलमी (रज़ियल्लाहु अंहु) नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से रिवायत करते हैंः "क़यामत के दिन किसी बंदे के क़दम उस समय तक नहीं हिलेंगे, जब तक उसकी आयु के बारे में न पूछ लिया जाए कि उसे किस काम में फ़ना किया और उसके ज्ञान के बारे में न पूछ लिया जाए कि उससे क्या किया तथा उसके धन के बारे में न पूछ लिया जाए कि उसे कहाँ से कमाया और कहाँ खर्च किया और उसके शरीर के बारे में न पूछ लिया जाए कि उसे कहाँ खपाया?"
सह़ीह़ - इसे तिर्मिज़ी ने रिवायत किया है।
बंदा जब क़यामत के दिन हिसाब-किताब के लिए खड़ा होगा, तो उसके क़दम वहाँ से जन्नत या जहन्नम की ओर उस समय तक नहीं बढ़ेंगे, जब तक उससे कुछ प्रश्न न कर लिए जाएँ। उससे उसके जीवन के बारे में न पूछ लिया जाए कि उसे किस काम में लगाया? नेकी के कामों में या गुनाह के कामों में? उसके ज्ञान के बारे में न पूछ लिया जाए कि उसके प्रति उसने क्या किया? जो कुछ जाना था उसपर अमल किया या नहीं? उसके धन के बारे में न पूछ लिया जाए कि उसे कहाँ से प्राप्त किया? हलाल तरीक़े से कमाया या हराम तरीक़े से? इसी तरह उसे किस काम में खर्च किया? अल्लाह के आज्ञापालन में खर्च किया या अवज्ञा में? तथा उसके शरीर के बारे में न पूछ लिया जाए कि उसे किस काम में खपाया? पुण्य के कार्यों में अथवा पाप के कार्यों में?