عَن أَبِي بُرْدَةَ بْنُ أَبِي مُوسَى رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ:

وَجِعَ أَبُو مُوسَى وَجَعًا شَدِيدًا، فَغُشِيَ عَلَيْهِ وَرَأْسُهُ فِي حَجْرِ امْرَأَةٍ مِنْ أَهْلِهِ، فَلَمْ يَسْتَطِعْ أَنْ يَرُدَّ عَلَيْهَا شَيْئًا، فَلَمَّا أَفَاقَ، قَالَ: أَنَا بَرِيءٌ مِمَّنْ بَرِئَ مِنْهُ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، إِنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ بَرِئَ مِنَ الصَّالِقَةِ وَالحَالِقَةِ وَالشَّاقَّةِ.
[صحيح] - [متفق عليه]
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अबू मूसा अब्दुल्लाह बिन क़ैस- रज़ियल्लाहु अन्हु- कहते हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम), मुसीबत के समय ज़ोर-ज़ोर से रोने वाली, सिर के बाल नोचने वाली और कपड़े फाड़ने वाली स्त्रियों से बरी (दायित्वमुक्त) हैं )।
सह़ीह़ - इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

सर्वशक्तिमान एवं महान अल्लाह जो कुछ देता है और जो कुछ लेता है, उसमें उसकी पूर्ण हिकमत निहित होती है और उसका हर निर्णय औचित्यपूर्ण होता है। जिसने इसपर एतराज़ किया और विरोध जताया, गोया उसने अल्लाह के निर्णय पर एतराज़ किया, जो पूर्णतया मसलहत व हिकमत पर आधारित, न्यायोचित तथा हितकारी होता है। यही कारण है कि नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने बताया है कि जिसने अल्लाह के निर्णय पर नाराज़गी व्यक्त की और धैर्य खोया, वह आपके प्रशंसनीय पथ पर चलने वाला नहीं है। बल्कि वह सीधे रास्ते से भटक कर उन लोगों के समूह में शामिल हो गया, जो मुसीबत आने पर अधीरता और बेचैनी दिखाते हैं, क्योंकि वे सांसारिक जीवन से चिपके रहते हैं और इस बात पर भरोसा नहीं रखते कि मुसीबत के समय सब्र करने पर अल्लाह के यहाँ प्रतिफल और उसकी प्रसन्नता प्राप्त होगी। अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने स्वयं को ऐसे लोगों से अलग कर लिया है, जो कमज़ोर ईमान के मालिक होने के कारण मुसीबत की चोट सह नहीं पाते। उनका दिल व्याकुल हो जाता है; रो-धोकर, विलाप करके और हाय वाय करके ज़बान से असंतोष व्यक्त करते हैं या फिर बाल नोचकर और गरीबान फाड़कर अमल से असंतोष जताते हैं। जबकि यह सब जाहिलयत की आदतों को दोबारा जीवित करने के दायरे में आता है। इसके विपरीत आपके मित्र वह लोग हैं, जिनको कोई मुसीबत आती है, तो अल्लाह के सामने आत्मसमर्पण कर देते हैं और कहते हैं : {إِنَّا لله وإِنا إليه رَاجعُونَ. أولئِكَ عَلَيهِم صَلَوات مِنْ رَبِّهِم وَرَحمَة وَأولئِكَ هُمُ المُهتدُونَ} (बेशक हम अल्लाह के लिए हैं और हमें उसी की ओर लौटकर जाना है। इन्हीं लोगों पर उनके पालनहार की कृपाएँ और रहमतें हैं और यही लोग मार्गदर्शन पाने वाले हैं।)

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