عَنْ أَبِي الحَوْرَاءِ السَّعْدِيِّ قَالَ: قُلْتُ لِلْحَسَنِ بْنِ عَلِيٍّ رضي الله عنهما: مَا حَفِظْتَ مِنْ رَسُولِ اللهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ؟ قَالَ: حَفِظْتُ مِنْ رَسُولِ اللهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ:

«دَعْ مَا يَرِيبُكَ إِلَى مَا لاَ يَرِيبُكَ، فَإِنَّ الصِّدْقَ طُمَأْنِينَةٌ، وَإِنَّ الكَذِبَ رِيبَةٌ».
[صحيح] - [رواه الترمذي والنسائي وأحمد]
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हसन बिन अली बिन अबू तालिब- रज़ियल्लाहु अन्हु- कहते हैं कि मैंने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से याद किया है कि जिस कार्य में तुझे संदेह हो, उसे छोड़कर वह कार्य करो, जिसमें तुझे संदेह न हो।
सह़ीह़ - इसे तिर्मिज़ी ने रिवायत किया है।

व्याख्या

इनसान को चाहिए कि उसे जिस चीज़ के हलाल होने में संदेह हो, उसे छोड़ दे कि कहीं अनजाने में हराम में न पड़ जाए। वह संदेह वाली चीज़ को छोड़ उस चीज़ को अपनाए, जो यक़ीनी तौर पर हलाल हो और जिसमें कोई संदेह न हो, ताकि उसका दिल संतुष्ट रहे, मन शांत रहे, उसका झुकाव विशुद्ध रूप से हलाल वस्तु की ओर रहे और हराम, संदिग्ध एवं दिल में खटकने वाली चीज़ों से दूरी बनी रहे।

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