عَنِ ابْنِ عُمَرَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُمَا: أَنَّ عُمَرَ سَأَلَ النَّبِيَّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ:

كُنْتُ نَذَرْتُ فِي الجَاهِلِيَّةِ أَنْ أَعْتَكِفَ لَيْلَةً فِي المَسْجِدِ الحَرَامِ، قَالَ: «فَأَوْفِ بِنَذْرِكَ»، متفقٌ عليه، وفي لفظٍ لمسلمٍ: «يومًا».
[صحيح] - [متفق عليه]
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उमर बिन ख़त्ताब- रज़ियल्लाहु अन्हु- कहते हैं कि मैंने कहाः ऐ अल्लाह के रसूल! मैंने जाहिलीयत के ज़माने में मन्नत मानी थी कि मैं मस्जिदे हराम में एक रात (एक रिवायत के मुताबिक एक दिवसीय) ऐतिकाफ़ करुँगा, इसके बारे में आप क्या कहते हैं? आपने फ़रमायाः अपनी मन्नत पूरी करो।
सह़ीह़ - इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

उमर बिन खत्ताब -रज़ियल्लाहु अन्हु- ने जाहिलियत के युग में मस्जिदे हराम में एक रात एतेकाफ़ करने की मन्नत मानी थी। उन्होंने नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- से इस मन्नत के हुक्म के बारे पूछा, तो आपने मन्नत पूरी करने का आदेश दिया।

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