عن أَنَسِ بْنِ مَالِكٍ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ: قَالَ النَّبِيُّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ:

«تَسَحَّرُوا، فَإِنَّ فِي السَّحُورِ بَرَكَةً».
[صحيح] - [متفق عليه]
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अनस बिन मालिक -रज़ियल्लाहु अन्हु- कहते हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः तुम सहरी खाया करो, क्योंकि सहरी में बरकत है।

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सह़ीह़ - इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

इस हदीस में अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- रोज़े की तैयारी के तौर पर सहरी करने यानी सुबह से कुछ पहले खाने-पीने का आदेश दे रहे हैं और हिकमत यह बयान कर रहे हैं कि इससे बरकत प्राप्त होती है, जिसमें दुनिया एवं आख़िरत के सारे लाभ सम्मिलित हैं। सहरी की एक बरकत यह है कि इससे दिन के समय अल्लाह के आदेश के अनुपालन में सहायता मिलती है। सहरी की दूसरी बरकत यह है कि रोज़ादार जब सहरी करता है, तो दोबारा रोज़ा रखने से उकताता नहीं है, जबकि सहरी न करने वाले के लिए रोज़ा इतना कठिन और मुश्किल होता है कि वह दोबारा रखने में बोझ महसूस करता है। सहरी की तीसरी बरकत यह है कि उससे अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के अनुसरण और अह्ले किताब की मुख़ालफ़त का सवाब मिलता है। सहरी की चौथी बरकत यह है कि जब बंदा सहरी के लिए उठता है, तो कभी नमाज़ पढ़ लेता है, कभी कुछ ज़रूरतमंदों को जिन्हें वह जानता है सदक़ा करता है और कभी कुछ देर क़ुरआन की तिलावत भी कर लेता है। सहरी की पाँचवीं बरकत यह है यदि उसे अल्लाह की इबादत में सहायता प्राप्त करने और उसके रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के अनुसरण के इरादे से किया जाए, तो वह इबादत है। वैसे, अल्लाह के हर आदेश में बहुत-सी हिकमतें और मसलहतें होती हैं। सहरी का एक महत्वपूर्ण फ़ायाद फ़ज्र की नमाज़ के लिए जागना भी है। यही कारण है कि आपने सहरी देर से करने का आदेश दिया है, ताकि उसके बाद सोने की नौबत न आए कि फ़ज्र की नमाज़ छूट जाए। ऐसा देखा भी जा सकता है। क्योंकि रमज़ान में फ़ज्र की नमाज़ में जमात के साथ नमाज़ पढ़ने वालों की संख्या सहरी ही की वजह से अन्य दिनों की तुलना में अधिक होती है।

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