عَنْ أَنَسِ بْنِ مَالِكٍ رضي الله عنه عَنِ النَّبِيِّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ:

«لَا عَدْوَى، وَلَا طِيَرَةَ، وَيُعْجِبُنِي الْفَأْلُ» قَالَ قِيلَ: وَمَا الْفَأْلُ؟ قَالَ: «الْكَلِمَةُ الطَّيِّبَةُ».
[صحيح] - [متفق عليه]
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अनस बिन मालिक (रज़ियल्लाहु अंहु) का वर्णन है कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः "कोई रोग संक्रामक नहीं होता और न अपशगुन लेने की कोई वास्तविकता है। हाँ, मुझे फ़ाल (शगुन) अच्छा लगता है।" सहाबा ने कहाः शगुन क्या है? फ़रमायाः "अच्छी बात।"
सह़ीह़ - इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

चूँकि भला-बुरा सब कुछ अल्लाह के हाथ में है, इसलिए अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने इस हदीस में बताया है कि कोई रोग स्वयं संक्रमक नहीं होता। इसी तरह, अपशगुन के बारे में बताया कि इसका भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता। परन्तु, फ़ाल (अच्छा शगुन) का समर्थन किया तथा उसे अच्छा समझा। इसका कारण यह है कि शगुन एक तरह से अल्लाह के साथ अच्छा गुमान रखना है, तथा यह उद्देश्य को प्राप्त करने की प्रेरणा भी देता है। जबकि अपशगुन बाधा डालने का काम करता है। हम शगुन और अपशगुन के अंतर को निम्न बिंदुओं के द्वारा समझ सकते हैं : 1- शगुन अच्छी चीज़ों में लिया जाता है, परन्तु अपशगुन मात्र उन्ही विषयों के लिए होता है जो हानिकारक और बुरे होते हैं। 2. शगुन अल्लाह से अच्छी आशा रखने का नाम है तथा बंदे को आदेश दिया गया है कि अल्लाह से अच्छी आशा रखे, जबकि अपशगुन बदगुमानी का नाम है और बंदे को अल्लाह से बुरा गुमान रखने से मना किया गया है।

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