عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ أَنَّ النَّبِيَّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ:

«مَا مِنْ يَوْمٍ يُصْبِحُ العِبَادُ فِيهِ إِلَّا مَلَكَانِ يَنْزِلاَنِ، فَيَقُولُ أَحَدُهُمَا: اللَّهُمَّ أَعْطِ مُنْفِقًا خَلَفًا، وَيَقُولُ الآخَرُ: اللَّهُمَّ أَعْطِ مُمْسِكًا تَلَفًا».
[صحيح] - [متفق عليه]
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अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णित है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः "जिस दिन भी बंदे सुबह करते हैं, तो दो फ़रिश्ते उतरते हैं; एक कहता हैः ऐ अल्लाह ख़र्च करने वाले को उत्तम प्रतिफल प्रदान कर, जबकि दूसरा कहता हैः ऐ अल्लाह, रोकने वाले का विनाश कर।"
सह़ीह़ - इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

जो भी दिन गुज़रता है, उसमें आकाश से दो फ़रिश्ते उतरते हैं। एक कहता है कि ऐ अल्लाह, जो व्यक्ति भलाई के रास्ते, जैसे नेकी के कामों, बाल-बच्चों और अतिथियों पर खर्च करता है, उसे दुनिया एवं आख़िरत में प्रतिफल प्रदान कर और दूसरा कहता है कि ऐ अल्लाह, ऐसा कंजूस व्यक्ति, जो जहाँ खर्च करना अनिवार्य हो, वहाँ न खर्च करे, उसे तथा उसके धन का विनाश कर दे।

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