«مَنْ دَعَا إِلَى هُدًى كَانَ لَهُ مِنَ الْأَجْرِ مِثْلُ أُجُورِ مَنْ تَبِعَهُ، لَا يَنْقُصُ ذَلِكَ مِنْ أُجُورِهِمْ شَيْئًا، وَمَنْ دَعَا إِلَى ضَلَالَةٍ كَانَ عَلَيْهِ مِنَ الْإِثْمِ مِثْلُ آثَامِ مَنْ تَبِعَهُ، لَا يَنْقُصُ ذَلِكَ مِنْ آثَامِهِمْ شَيْئًا».
[صحيح] - [رواه مسلم]
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अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से रिवायत करते हुए कहते हैंः "जिसने किसी हिदायत की ओर बुलाया, उसे उतना ही सवाब मिलेगा, जितना उसका अनुसरण करने वालों को मिलेगा। लेकिन इससे उन लोगों के सवाब में कोई कमी नहीं होगी। तथा जिसने गुमराही की ओर बुलाया, उसे उतना ही गुनाह होगा, जितना गुनाह उसका अनुरण करने वालों को हागा। परन्तु इससे उन लोगों के गुनाह में कोई कमी नहीं होगी।"
सह़ीह़ - इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।
अबू हुरैरा -रज़ियल्लाहु अनहु- ने बयान किया है कि अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया : "जिसने किसी को हिदायत की ओर बुलाया, उसे उतना ही सवाब मिलेगा, जितना उसका अनुसरण करने वालों को मिलेगा। लेकिन इससे उन लोगों के सवाब में कोई कमी नहीं होगी।" "जिसने किसी हिदायत की ओर बुलाया" यानी उसे लोगों के लिए बयान किया और उन्हें उसकी ओर बुलाया। मसलन लोगों को यह बताया कि चाश्त की दो रकात नमाज़ सुन्नत है, और इनसान को इन दो रकातों को पढ़ना चाहिए। फिर लोगों ने उसकी बात मानकर चाश्त की नमाज़ पढ़ना शुरू कर दिया, तो उसे इन लोगों के सवाब के बराबर सवाब मिलेगा और इससे इन लोगों के सवाब में कोई कटौती नहीं होगी। क्योंकि अल्लाह अपार अनुग्रह का मालिक है। या फिर लोगों से यह कहे कि रात की अंतिम नमाज़ के रूप में वित्र पढ़ा करो और वित्र पढ़ने से पहले न सोया करो। हाँ, यदि किसी को रात के अंतिम भाग में उठने की इच्छा हो, तो वह रात के अंतिम भाग में पढ़े। फिर लोगों ने उसकी इस बात को मानकर इसपर अमल करना शुरू कर दिया, तो उसे इन सारे लोगों के बराबर सवाब मिलेगा। यानी जब-जब कोई व्यक्ति, जिसे उसके द्वारा इस मसले की जानकारी मिली, वित्र पढ़ेगा, तो उसे इसके बराबर सवाब मिलेगा। यही हाल शेष सत्कर्मों का भी है। इसके बाद आपने फ़रमाया : "तथा जिसने गुमराही की ओर बुलाया, उसे उतना ही गुनाह होगा, जितना गुनाह उसका अनुसरण करने वालों को होगा। परन्तु इससे उन लोगों के गुनाह में कोई कमी नहीं होगी।" यानी जिसने गुनाह तथा पाप की ओर बुलाया, जैसे लोगों को किसी धर्म से दूर कर देने वाले कार्य, असत्य, गाने-बजाने या सूद जैसी हराम चीज़ों की ओर बुलाया, उसके आह्वान से प्रभावित होने वाले हर व्यक्ति के बराबर गुनाह उसे होगा। क्योंकि उसी ने इस गुनाह का मार्ग दिखाया है। पुण्य या पाप का निमंत्रण कथन के द्वारा भी हो सकता है, जैसे किसी से कहना कि यह काम करो और कार्य के द्वारा भी हो सकता है। विशेष रूप से उन लोगों के द्वारा, जिनका अनुसरण किया जाता है। क्योंकि जिसे पता हो कि लोग मेरा अनुसरण करते हैं और इसके बाद उसने कोई कार्य किया, तो मानो उसने लोगों को वह कार्य करने का निमंत्रण दिया। यही कारण है कि लोग उसके करने को प्रमाण मानते हैं और कहते हैं कि अमुक ने यह काम किया है, इसलिए यह जायज़ है और अमुक ने यह काम किया है, इसलिए यह नाजायज़ है।