عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رضي الله عنه قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ:

«مَا يَزَالُ البَلاَءُ بِالمُؤْمِنِ وَالمُؤْمِنَةِ فِي نَفْسِهِ وَوَلَدِهِ وَمَالِهِ حَتَّى يَلْقَى اللَّهَ وَمَا عَلَيْهِ خَطِيئَةٌ».
[حسن] - [رواه الترمذي وأحمد]
المزيــد ...

अबू हुरैरा- रज़ियल्लाहु अन्हु- से रिवायत है कि नबी- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमायाः "मोमिन पुरुष एवं मोमिन स्त्री के साथ परीक्षाएँ सदा लगी रहती हैं; उसकी जान, उसकी संतान और उसके माल में। यहाँ तक कि वह अल्लाह से मिले और उसपर कोई गुनाह न हो।"
ह़सन सह़ीह़ - इसे तिर्मिज़ी ने रिवायत किया है।

व्याख्या

इनसान को (दुनिया) के इस कर्मस्थली में सुख-दुख के रूप में विभिन्न परीक्षाओं से गुज़रना पड़ता है। अतः जब इनसान को उसके धन, संतान अथवा जान से संबंधी किसी परीक्षा का सामना होता है और वह धैर्य के साथ उसका सामना करता है, तो यह उसके गुनाहों की माफ़ी का माध्यम बन जाता है। परन्तु, जब परीक्षा की घड़ी में झल्लाहट व्यक्त करता है, तो उसे अल्लाह की ओर से नाराज़गी मिलती है।

अनुवाद: अंग्रेज़ी फ्रेंच स्पेनिश तुर्की उर्दू इंडोनेशियाई बोस्नियाई रूसी बंगला चीनी फ़ारसी तगालोग सिंहली कुर्दिश होसा पुर्तगाली सवाहिली
अनुवादों को प्रदर्शित करें

शब्दार्थ

अधिक