عَنْ أَنَسٍ رضي الله عنه قَالَ:

كَانَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يُكْثِرُ أَنْ يَقُولَ: «يَا مُقَلِّبَ القُلُوبِ ثَبِّتْ قَلْبِي عَلَى دِينِكَ»، فَقُلْتُ: يَا رَسُولَ اللهِ، آمَنَّا بِكَ وَبِمَا جِئْتَ بِهِ فَهَلْ تَخَافُ عَلَيْنَا؟ قَالَ: «نَعَمْ، إِنَّ القُلُوبَ بَيْنَ أُصْبُعَيْنِ مِنْ أَصَابِعِ اللهِ يُقَلِّبُهَا كَيْفَ يَشَاءُ».
[صحيح] - [رواه الترمذي وأحمد]
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शहर बिन हौशब कहते हैं कि मैंने उम्मे सलमा- रज़ियल्लाहु अन्हा- से कहाः ऐ उम्मुल मोमिनीन (मुसलमानों की माता), अल्लाह के रसूल- सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- जब आपके पास होते, तो अकसर कौन-सी दुआ पढ़ा करते थे? उन्होंने कहाः आप अकसर कहा करतेः "يا مقلب القلوب ثبت قلبي على دينك" (अर्थात्ः ऐ दिलों को पलटने वाले, मेरे दिल को अपने धर्म पर जमाए रख।)
सह़ीह़ लि-ग़ैरिही (अन्य सनदों अथवा रिवायतों से मिलकर सह़ीह़) - इसे तिर्मिज़ी ने रिवायत किया है।

व्याख्या

अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- अधिकतर समय जो दुआ किया करते थे, वह यह थी : "ऐ दिलों को पलटने वाले!" यानी कभी आज्ञापालन एवं अल्लाह की जानिब आकर्षण की ओर तो कभी अवज्ञा एवं ग़फ़लत की ओर। "मेरे दिल को अपने धर्म पर जमाए रख।" यानी अपने धर्म पर इस तरह सुदृढ़ रख कि वह इस संतुलित धर्म एवं सीधे मार्ग से ज़रा भी न हटे।

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