عَنِ الْبَرَاءِ رضي الله عنه قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ:

«إِذَا سَجَدْتَ، فَضَعْ كَفَّيْكَ وَارْفَعْ مِرْفَقَيْكَ».
[صحيح] - [رواه مسلم]
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बरा बिन आज़िब- रज़ियल्लाहु अन्हुमा- से मरफूअन रिवायत हैः ((जब सज्दो करो तो अपनी हथेलियों को नीचे रखो, तथा कोहनियों को उठा के रखो।
सह़ीह़ - इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।

व्याख्या

इस हदीस का अर्थ यह है कि जब धरती पर सजदा करो, तो अपनी हथेलियों को धरती पर रख दो और दोनों बाज़ू को पहलुओं से हटाकर उठाए रखो। क्योंकि इस शक्ल से विनम्रता दिखती है, सुस्ती नहीं झलकती और जानवरों से समानता भी नहीं दिखती। इसके विपरीत जब इन्सान दोनों बाज़ू को धरती पर रख देता है तो उसकी हालत दरिंदों जैसी दिखती है, उससे सुस्ती जाहिर होती है और ऐसा लगता है कि नमाज़ में उसकी तवज्जोह बहुत कम है। सहीह मुस्लिम में मौजूद मैमूना -रज़ियल्लाहु अनहा- से वर्णित एक हदीस में है : "अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- अपने दोनों हाथों को अपने दोनों पहलू से इस तरह अलग रखते थे कि यदि कोई चौपाया हाथों और बाज़ू के बीच से गुज़रना चाहता, तो गुज़र सकता था।"

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