عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رضي الله عنه عَنِ النَّبِيِّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ:

«إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ العُطَاسَ وَيَكْرَهُ التَّثَاؤُبَ، فَإِذَا عَطَسَ أَحَدُكُمْ وَحَمِدَ اللَّهَ، كَانَ حَقًّا عَلَى كُلِّ مُسْلِمٍ سَمِعَهُ أَنْ يَقُولَ لَهُ: يَرْحَمُكَ اللَّهُ، وَأَمَّا التَّثَاؤُبُ: فَإِنَّمَا هُوَ مِنَ الشَّيْطَانِ، فَإِذَا تَثَاءَبَ أَحَدُكُمْ فَلْيَرُدَّهُ مَا اسْتَطَاعَ، فَإِنَّ أَحَدَكُمْ إِذَا تَثَاءَبَ ضَحِكَ مِنْهُ الشَّيْطَانُ». زَادَ التِّرْمِذِيُّ: «فِي الصَّلَاةِ».
[صحيح] - [متفق عليه]
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अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णित है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया : "नमाज़ में जम्हाई लेना शैतान की ओर से होता है। अतः यदि किसी को जम्हाई आए तो उसे सामर्थ्य भर रोके।"
सह़ीह़ - इसे तिर्मिज़ी ने रिवायत किया है।

व्याख्या

नमाज़ में जम्हाई शैतान की ओर से है। क्योंकि जम्हाई उस समय आती है, जब शरीर भारी, ढीला-ढाला और भरा हुआ हो, सुस्ती छाई हुई हो और नींद आ रही हो। जबकि शैतान ही इस बात की प्रेरणा देता है कि इन्सान आकांक्षाओं के पीछे पड़ा रहे और खूब खाता-पीता रहे। अतः जब किसी को नमाज़ की हालत में जम्हाई आए, तो वह जहाँ तक हो सके उसे रोकने का प्रयास करे और इसके लिए जहाँ तक संभव हो अपने दाँतों एवं होंठों को बंद रखे। ताकि शैतान उसकी शक्ल बिगाड़ने, उसके मुँह के अंदर प्रवेश करने और उसपर हँसने जैसे अपने उद्देश्यों में सफल न हो सके। लेकिन यदि वह जम्हाई को रोक न पाए, तो मुँह पर हाथ रख ले।

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