«لا تُجادِلوا في القرآن؛ فإنَّ جِدالًا فيه كُفرٌ».
[صحيح] - [رواه أبو داود الطيالسي]
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अब्दुल्लाह बिन अम्र (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) का वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः "c2">“कुरआन के संबंध में वाद-विवाद न करो, क्योंकि इसके विषय में वाद-विवाद करना कुफ़्र है।”
अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने क़ुरआन के बारे में वाद-विवाद करने से मना किया है, क्योंकि यह कुफ़्र की ओर ले जाता है। इसका कारण यह है कि कभी-कभी इन्सान क़ुरआन की कोई आयत या कोई शब्द सुनात है, जिसकी जानकारी उसके पास नहीं होती। ऐसे में वह जल्दबाज़ी से काम लेते हुए उसे पढ़ने वाले को गलत ठहरा देता है और उसे क़ुरआन मानने से इनकार कर देता है। या किसी से किसी ऐसी आयत के बारे में बहस करता है, जिसके बारे में वह कुछ नहीं जानता और इसके बावजूद उसे पथभ्रष्ट कहता है। यह वाद-विवाद कभी-कभी इन्सान को सत्य से दूर कर देता है, यद्यपि उसे वह उचित दिखाई देता हो। यही कारण है कि इसे हराम घोषित किया गया और कुफ़्र कहा गया है। लेकिन यदि किसी इन्सान के अंदर इस तरह की बातें न पाई जाएँ, तो उसका वाद-विवाद करना वैध अथवा प्रशंसनीय है। जैसे कोई सीखने और सत्य को सामने लाने के लिए पूछे। इसी की ओर इशारा करते हुए उच्च एवं महान अल्लाह ने कहा है : "और उनसे ऐसे ढंग से वाद-विवाद करो, जो उत्तम हो।"