«لا يَقْبَل الله صلاة حَائض إلا بِخِمَار».
[فيه ضعف] - [رواه أبو داود والترمذي وابن ماجه وأحمد]
المزيــد ...
आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) से रिवायत है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः "c2">“अल्लाह किसी युवती की नमाज़ बिना दुपट्टे के क़बूल नहीं करता।”
किसी वयस्क एवं अक़्लमंद स्त्री के लिए बिना दुपट्टा के यानी सर एवं गरदन को खोलकर नमाज़ पढ़ना जायज़ नहीं है। यदि वह इस तरह नमाज़ पढ़ती है, तो उसकी नमाज़ अमान्य होगी। क्योंकि अल्लाह के रसूल -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने इस हदीस में अल्लाह के ग्रहण न करने की बात कही है और ग्रहण न करने का मतलब होता है सहीह एवं मान्य न होना। यहाँ "माहवारी वाली" स्त्री से मुराद ऐसी वयस्क स्त्री है, जो माहवारी की आयु को पहुँच चुकी हो और उसके अंदर वयस्क होने का कोई भी चिह्न दिखाई दे गया हो। ये चिह्न हैं, माहवारी आना, वीर्य निकलना, पेड़ू के बाल निकलना या पंद्रह वर्ष पूरे हो जाना। आपने यहाँ माहवारी की बात इसलिए की, क्योंकि यह स्त्रियों के साथ खास है और अधिकतर इसी से वयस्क स्त्री की पहचान होती है। इससे मुराद कदापि ऐसी स्त्री नहीं है जो माहवारी की अवस्था में हो। क्योंकि माहवारी के दिनों में नमाज़ पढ़ना मना है। इसका स्पष्ट उल्लेख हदीस में भी है और इसपर उलेमा का मतैक्य भी है।